मनुष्य जाति प्रकृति का एक अटूट हिस्सा है और प्रकृति के बिना मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। मानव शरीर पंचतत्व अर्थात अग्नि, पृथ्वी, जल, वायु एवं आकाश से मिलकर बना है एवं अंत में इन्हीं में सबको विलीन हो जाना है। विज्ञान भी इन पंचतत्व को नकार नहीं सकता है। मनुष्य की बुद्धि, उसका मन एवं हृदय में बसी भावनाएं प्रकृति को संतुलित, संरक्षित करने का कार्य करते हैं।
मानव के लिए नदियां, सागर, घर के आंगन, चांद सूरज सितारे, मिट्टी, आसमान, पेड़ पौधे इत्यादि जीवन जीने के लिए मूलभूत आवश्यकता हैं। प्रकृति केवल जीवन जीने में ही मदद नहीं करती बल्कि समय समय पर मानव को शिक्षा देकर गुरु का दायित्व भी निभाती है। गुरुत्वाकर्षण का नियम प्रकृति के सानिध्य में सीखा गया , बेहद खूबसूरत और भावनाओं से ओत प्रोत कविताएं भी प्रकृति की गोद में रची गईं।
पर जब मानव हद से अधिक प्रकृति का दोहन करने लगा तब तब प्रकृति ने ममतामई रुप त्यागकर ऐसा तांडव भी दिखाया है कि मनुष्य ने अच्छा सबक सीखा है। अभी ज्यादा दूर ना जाएं तो दो हजार बीस में वैश्विक स्तर पर फैली कोरोनावायरस महामारी ने भी आकर चेताया कि प्रकृति के लिए साधनों का दुरुपयोग महंगा पड़ सकता है और अब जब मनुष्य ने समझा है प्रकृति के महत्व को तब तक लाखों की संख्या में लोग अपनी जान गंवा चुके हैं।
जबकि हमारे भारत में हमारे पूर्वजों ने सनातन धर्म के माध्यम से हमको सिखाया था कि हम सभी प्रकृति का ही हिस्सा हैं और साथ ही हर वनस्पति,जीव जंतु एवं हर इंसान प्रकृति के ही कणों से निर्मित है। जैसे कि हम इंसान जल, वायु, अग्नि, पृथ्वी एवं आकाश से बना है एवं मृत्यु के बाद अग्नि देने के उपरांत मनुष्य फिर से मिट्टी यानि कि प्रकृति से ही एकाकार हो जाता है।
हम पेड़ - पौधे, जीवों सभी की पूजा करना सीखते हैं हमारे आरंभिक वर्षों से ही क्योंकि हमें यही सिखाया जाता है कि प्रकृति के कण-कण का आदर - सम्मान करना चाहिए। यह सब बेहद जरूरी करार दिया गया हमारे रोजमर्रा के नियमों में ताकि हम इनकी आवश्यकता एवं उपयोगिता समझें।जब हम किसी की पूजा करते हैं तब हम उनका सम्मान करते हैं उनके लिए गलत नहीं सोचते या हानि नहीं पहुंचाते और यही मूलभूत सोच थी प्रकृति प्रदत्त हर चीज की पूजा करने के पीछे। जब तक हमने प्रकृति का सम्मान किया उसका ममतामई स्वरूप देखा पर जब से हमने प्रकृति का अनावश्यक दोहन शुरू किया बस यूं समझिए कि खुद के ही विनाश को न्योता दे दिया।
वैसे ऐसे लोग भी मिल जाते हैं जो मानते हैं कि ऐसा नियम जरूरी है कि एक दूसरे का विनाश करना चाहिए तभी हम बचेंगे तो यह ग़लत सिद्धांत है पूरी तरह, पृथ्वी पर सबके लिए जगह है और समय आने पर खुद ब खुद हर जीव - जंतु, वनस्पति के जीवन का अंत होगा ही होगा। इसके लिए जो चीजें, जीव, हवा पानी या किसी अन्य इंसान का विनाश करना या दूषित करना बिल्कुल भी जरूरी नहीं है। हर किसी का समय निर्धारित है और तब उसको जाना ही होगा तब एक सांस भी कोई किसी को उधार तक नहीं दे सकता है।
जब तक हमने डर से या फिर मन से अपना धर्म निभाया तब तक प्रकृति ने भी हमें अपना कोमल स्वरूप दिखाया और हमें सब कुछ मुफ्त देती रही पर जबसे हमने धर्म निभाना छोड़ा प्रकृति ने भी अपना विध्वंसक रूप दिखाया महामारी, बादल फटना, दुनिया विश्व युद्ध के कगार पर पहुंच गई और जंगलों में आग लगना ये तो बस बानगी भर है ऐसे सैंकड़ों उदाहरणों से स्पष्ट है कि प्रकृति ने कितना कुछ दिया हमें और हमने कैसे सब सुंदर उपहार खुद से ही खो दिए।
वर्ष २०२० की महामारी, बाढ़ और उसके बाद से भी निरंतर जारी प्राकृतिक आपदाओं का आते रहना एवं लाखों जाने जाना साबित करता है कि मानव के द्वारा प्रकृति के साथ ये खिलवाड़ अब और नहीं चल सकेगा। मानव अस्तित्व पर गहरा संकट छाया हुआ है और अब हमें जागना ही होगा वरना सच में बहुत देर ना हो जाए। जो हमारी सनातनी परंपराएं थीं और जिनको पीछे छोड़ दिया गया पिछली एकाध पीढ़ियों के द्वारा उनको फिर से व्यवहार में लाना होगा।
आसान नहीं है ये सब पर फिर भी मानव को अपना अस्तित्व बनाए रखना है तो ये सब करना ही होगा। पेड़ पौधे लगाइए, साफ सफाई रखिए, मांसाहारी भोजन ना खाएं या कम करें, पॉलिथीन का उपयोग ना करें और प्रकृति का संरक्षण करें और सबसे महत्वपूर्ण बात कि प्रकृति एवं हर दूसरे इंसान का सम्मान करें कि उनमें भी जीवन बसता है, एक दिन में नहीं होगा पर सब मिलकर करेंगे तो जरूर होगा। मानव जीवन तो हमेशा से ही प्रकृति की गोद में पलता और बढ़ता आया है और प्रकृति ने भी अपना सर्वस्व मानव जाति को बिना भेदभाव के दिया है।
उपयोग करें प्रकृति के उपहारों का हद से अधिक दोहन नहीं वरना एक यह सब युद्ध में बदल जाएगा जो प्रकृति बनाम मानव होगा।
स्मिता सक्सेना
बैंगलौर
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
आपके विचारो से पूर्णतः सहमत 🙏विचारोत्तेजक लेख
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