आज फिर से पड़ोस वाली आंटी को कहते सुना 'अरे सुना सामने वाली फॅमिली की लड़की मॉल में एक लड़के के साथ बैठी थी मैंने अपनी आँखों से देखा, जीन्स और छोटा सा टॉप पहने थी', अरे क्या ज़माना आ गया है अब लड़कियाँ खुद ही ऐसे कपड़े पहनती हैं फिर लड़के खुद पर कैसे काबू रखेंगे। ये आजकल की लड़कियाँ भी ना...और लोग भी अपनी लड़कियों के ऊपर ध्यान ही नहीं देते, क्या पहन रही हैं? कहाँ किसके साथ जा रही हैं? तभी रेप और छेड़छाड़ की खबरें आती हैं। मन तो किया कह दूं, ' हां आंटी, आपने अपनी आँखों से ही देखा होगा हमें पता है पर बच्चियों को तो छोड़ दो।'
ये आंटी वो हैं जो मोहल्ला बीबीसी बुलाई जाती हैं खुद को देखने और अपने बच्चो को देखने की बजाय कॉलोनी के बाकी के हर घर की खबर रखती हैं। नाइटी पहने पूरा दिन निकाल देती हैं पर दूसरा कोई मजाल है कि गलत(उनके अनुसार) कपड़े पहन ले वह भी एक लड़की ऐसा तो वो कैसे बर्दाश्त करें??? इन आंटी के दोनों बेटे एक नंबर के घुमक्कड़ और पढाई में हद दर्जे के कामचोर और आवारा हैं दोनों न पढ़ने के कारण घर पर ही रहते हैं और ये तो सब जानते हैं खाली दिमाग शैतान का घर और उस पर माँ की शह और उन्ही के नक़्शे कदम पर चलते हैं दोनों। कभी किसी लड़की पर छींटाकशी तो कभी किसी से झगड़ा। पर ये सब आंटी को नहीं दिखता अपना घर और लड़के सुधारने की कोई जरूरत उनको नहीं महसूस होती है पर आस पास का कोई व्यक्ति और विशेषकर कोई लड़की न गलत कर बैठे इसका पूरा ध्यान रखते हैं ऐसे लोग।
उस लड़की को मैं अच्छी तरह जानती हूँ पढ़ने में काफी अच्छी है और अपने काम से मतलब रखने वाले बच्चों में से है। उसके पेरेंट्स भी अच्छे और सज्जन लोग हैं अपनी बेटी पर पूरा विश्वास करते हैं लेकिन नहीं इनको तो टीका-टिप्पणी करनी ही है न खुश रहेंगे न दूर को चैन से रहने देंगे। इस तरह के बहुत से उदाहरण हमें अपने आस पास देखने को मिल जायेंगे कभी कभी कभी इतना गुस्सा आता है इस तरह के लोगों पर कि क्या बताएं पर इनसे बहस का भी कोई फायदा नहीं।
अब इनसे कोई पूछे कि छोटी छोटी बच्चियां किस तरह से आदमियों और लड़कों को एक्साइट करती है कि वो खुद पर काबू ही नहीं कर पाते हैं? इन जैसे लोगों की वजह से क्या बच्चियों को घर में बंद रखें? या फिर से वही बचपन में शादी वाला रिवाज़ शुरू करें क्या कि जब लड़की को पढ़ाया भी नहीं जाता था और बस घर में कैद रखकर घर का कामकाज सिखाकर फिर बचपन में ही ब्याह कर विदा कर दें? और आज भी कई लोग तो ये देख ही नहीं पाते कि लड़कियाँ थोड़ा आगे बढे, तरक्की करें और इसलिए भी लड़कियों को सबक सिखाने के लिए भी इस व्यभिचार का सहारा लेते हैं कि डरकर लड़कियां घर बैठ जाएं और तरक्की करने की सोचें भी नहीं...और एक बात ये भी समझ में मेरी नहीं आती कि अब तो लड़कों के साथ भी इस तरह के व्यभिचार बढ़ रहे है तो क्या लड़के भी इसी तरह से ही एक्साइट करते है ऐसे व्यभिचारियों को। नहीं ऐसा नहीं है इन लोगों की मानसिकता ही ऐसी है कि छोटी बच्चियों को निशाना बनाते है क्योंकि छोटे होने की वजह से वो कमज़ोर होती हैं और प्रतिरोध नहीं कर पाती हैं तो जरूरत है अपनी और समाज की सोच बदलने की। अगर हम लड़कियों को शिक्षा दे रहे हैं तो लड़कों को भी दूसरों का सम्मान करने के लिए बचपन से ही प्रेरित करें। समाज के एक बड़े हिस्से लड़कियों को पिछड़ा बनाकर कुछ हासिल नहीं होगा। कपडे नहीं समझ और सोच बदलनी होगी समाज की हर इकाई मज़बूत होगी तो ही एक सभ्य सुसंस्कृत समाज बनेगा और हम सब निर्भय होकर जी पाएंगे।
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पढ़ने के लिए शुक्रिया
स्मिता सक्सेना
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