व्यथा-अथ-कथा ??

व्यथा-अथ-कथा ??

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Smita Saksena
Smita Saksena 12 Apr, 2020 | 1 min read

जब लॉकडाउन हुआ तो सोचकर खुश हुई मैं कि चलो अब जल्दी उठने से कुछ समय तक मुक्ति मिली पर हमको क्या पता था कि एक ऐसे चक्रव्यूह में पड़ने वाली हूं कि जिससे निकलना मुश्किल ही नही नामुमकिन है। अरे भाई, छह बार खाना , नाश्ता, स्नैक्स बनते हैं फिर बर्तन भी उतनी टाईम धुलते हैं और किचन भी उतनी ही बार पोछते रहो फिर झाड़ू-पोछा, डस्टिंग, कपड़े धोना और ढ़ेर सारे अन्य काम जिनके लिए अक्सर ताने भी सुनती हूं कि आखिर घर पर ही रहती हो पूरा दिन करती क्या हो तुम? पर अब सब घर पर ही हैं एक मिनट का चैन नहीं, फिर आदत ऐसी कि सवेरे ही नींद खुल जाती है और पहले की तरह दोपहर की नींद का समय होता है तब तक फिर से खाने का समय हो जाता है सवेरे के नाश्ते और बाद के स्नैक्स के बाद। हाय फिर बचा खाना छोटे छोटे बर्तन में रखते रहो और साथ में ये भी सोचने की मशक्कत लगती है कि अब शाम को या रात के खाने में इस बचे हुए खाने को कैसे नया रूप दिया जाए ताकि खाना सिर्फ हमको ही ना खाना पड़ जाए। बस सारा समय खाना खाना , बर्तन और बस बर्तन जिंदगी उलझकर रह ग ई इसमें और कई लोग फिर भी अजीबोगरीब सवाल पूछते हैं कि अब तो सब घर पर ही रहते हैं तो अब करता काम ही रहता होगा घर में। बताइए ऐसे लोगों के उजबक सवालों का कोई जवाब है आपके पास, अगर है तो हमको जरूर बताइएगा।


स्मिता सक्सेना

बैंगलौर

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