आज जिस विषय पर बात करने जा रही हूं मैं शायद वो कइयों को पसंद भी ना आए।
कितना कष्ट हो रहा है लॉकडाउन में सिर्फ घर के भीतर रहने की वजह से सभी को, है ना? कभी सोचा है घर के भीतर रह जाने वाली उन स्त्रियों के बारे में जो पूरी जिंदगी चारदीवारी में ही बिता देती हैं, मजाक की पात्र बनती हैं तो कभी लोग उनके हृदय को अपने ताने से बींधते हैं। सब कुछ करने और कभी शिकायत ना करने वाली इन स्त्रियों के बारे में कोई नहीं सोचता है सबको यही लगता है कि क्या जरूरत है इसको खाने रहने को मिल रहा है बिना कुछ किये (ध्यान दीजिए 'बिना कुछ किये') क्या सच में किसी भी घर में दो रोटी भी बिना कुछ किये मिल सकती हैं एक स्त्री को? ऐसा कभी नहीं हो सकता। पुरुष तो छोड़िए सबसे पहले उस घर की औरतें ही उसको गालियों और तानों से नवाज देंगी। कैसी औरत है घर में रहती है और इतना भी नही कर सकती। कहीं सास, कहीं जेठानी तो कहीं देवरानी या ननद , यानि कि जिसको भी मौका मिलता है अपना प्रभाव दिखाने से चूकती नहीं।
और खासकर वो जो पैसे कमाने बाहर निकल जाती हैं वो तो बिल्कुल भी नहीं समझने की कोशिश करती कि पैसा नहीं कमाने से वो स्त्री अपमान और पैसा कमाने से तुम सम्मान की अधिकारी नहीं हो जाती हो। तुम्हारी उम्र ज्यादा है या कम इसकी आड़ लेकर किसी का अपमान करने का तुम्हें कोई हक नहीं है।
और अब चलिए आते हैं लॉकडाउन की ओर फिर से जहां आज हर कोई घर में रहने को मजबूर हैं तब इन औरतों को भी पता चल रहा है कि घरों में कितना काम होता है क्योंकि जब आप घर से बाहर निकल जाते हो लोग तरस भी खा लेते हैं कि इसको टाईम नहीं मिलता होगा। घर में रहने वालों पर कोई तरस नहीं खाता।सुनने को मिलता है सारा दिन क्या करती हो। अब इनको भी रहना पड़ रहा है घर में ऊपर से काम भी करना पड़ता है क्योंकि अब तो बहाना ही नहीं है कोई। तो उठाओ मजा लॉकडाउन का तुम भी और अगर इंसानियत की वजह से तुमको समझ आए कि घर में कितने काम होते हैं और कितने प्यार से उनको किया जाता है तो अपनी भूल सुधार कर कम से कम अगली बार अपने ही जैसी किसी स्त्री का अपमान मत करना। तुम पैसे कमाती हो तो वो अपना सर्वस्व देकर अपने घर को संभालती है।
अब अगर लॉकडाउन का ये नया मतलब समझ आया हो तो किसी को त्रास मत देना क्योंकि इनके लिए ये लॉकडाउन कोई नया तो नहीं।
स्मिता सक्सेना
बैंगलौर
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