१.
खुद ही देखो आज कैसी घड़ी आई है,
इंसानों ने बनाई आखिर ये क्या बला है।
पूरी की पूरी बस्ती अब घरों में कैद है,
कोरोना ने तबाही यूं दुनिया में मचाई है।
२.
अब वक्त कुछ यूं कि रखना फासले है,
हाथ ना मिलाओ नमस्कार अपनाना है।
कुछ यूं इस दौर ने हमें महसूस कराया है,
कुछ ग़लत तो कुछ सही सामने आया है।
३.
सड़कें खाली तो सूनी हर एक गली हुई है,
पर घरों के भीतर गुलजार खुशी भी तो है।
शबनमी ओस फूलों पर और भी खिलती है,
रिश्तों में मानों नई एक ताजगी भर गई है।
४.
प्रकृति ने इठलाकर मानों चेतावनी सी दी है,
जड़ों की ओर लौट सब पहले सा बनाना है।
हारना नहीं जीतकर अब बाहर निकलना है,
फिलहाल घर पर रह कोरोना को भगाना है।
स्मिता सक्सेना
बैंगलौर
मौलिक, स्वरचित
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