मैं अकेली ही काफी हूं!

कुछ पंक्तियां एक स्त्री की शक्ति का चित्रण करने के लिए।

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Shubha Pathak
Shubha Pathak 06 May, 2020 | 0 mins read

गलत के खिलाफ और सही का साथ देने को मैं अकेली ही काफी हूं,

चाहे कोई थामे ना थामे हाथ मेरा, पर दुनिया से भिड़ जाने को मैं अकेली ही काफी हूं।

हो किरदार एक मां का या पत्नी का, या फिर रिश्ता निभाना हो बेटी या बहन का,

ढल जाती हूं मैं हर किसी रूप में, हर किरदार को शिद्दत से निभाने को मैं अकेली ही काफी हूं,

हो सरस्वती बनकर शिक्षा देना या अन्नपूर्णा बनकर पेट भरना, एक कुटुंब और परिवार के लिए मैं अकेली ही काफी हूं।

कोमल हूं फूल की तरह पर कमजोर नहीं, ज़रूरत पड़े जो अगर तो काली बनकर दुष्टों के संहार के लिए मैं अकेली ही काफी हूं।

जो होगा हुनर तो जीतूंगी हर बाज़ी मैं, क्यूंकि इस भीड़ भरी दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाने को मैं अकेली ही काफी हूं।

जब भी ज़रूरत होगी पाओगे पास मुझे तुम अपने,

मेरे अपनों की मुस्कान के लिए मैं अकेली ही काफी हूं।

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