बड़ी अजीब हैं मेरे आसपास की औरतें,
ली हुईं हैं कुछ परियों सी सूरतें।
हैं सभी की कुछ अधूरी सी हसरतें,
बरसाती हैं फ़िर भी , ख़ुदा सी रहमतें।
बड़ी अजीब हैं मेरे आसपास की औरतें....
भगति हैं, दौड़ती हैं, वक़्त को थामने के लिए,
अपनों के लिए सोचने की हरदम...
है उनमें कुछ ग़लत सी आदतें।।
बड़ी अजीब हैं मेरे आसपास की औरतें....
रंज और ग़म भी छुपा लेतीं हैं,
मुस्कुराहट की ओट में।
आने नहीं देतीं कभी माथे पर,
ज़िम्मेदारी कु सलवटें।।
हैं बड़ी अजीब ये कुछ,
ज़िम्मेदार सी औरतें।।
बड़ी अजीब हैं मेरे आसपास की औरतें...
शुभांगनी शर्मा
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