चुस्की

मेरी बातें मेरे पीछे थोड़ी कर लिया करो, चाय की चुस्की की तरह मेरी ज़िंदगी का भी मज़ा लिया करो।।

Originally published in hi
Reactions 2
643
Shubhangani Sharma
Shubhangani Sharma 13 Nov, 2020 | 0 mins read
Gossiping is like ritual. We should follow.

सामने टेबल पर तरह तरह का नाश्ता रखा हुआ था और कुछ महिलाएं चटखारे ले रही थीं। खाने के और साथ साथ बातों के। एक महिला ने खुरमी उठाते हुए कहा, " सुना है गुप्ता जी के लड़के की शादी तय हो गयी।"

तभी दूसरी कहती है, " काहे ही तय हो गयी, बस करनी पड़ी...लड़की की जात का ठिखाना नहीं पर लड़के की ज़िद्द के सामने झुकना पड़ा।"

"अरे जाने तो दो हर घर की यही कहानी है। अब राठी जी की लड़की भी तो भाग गई..."

"भागी कहाँ है, रिसेप्शन तो दिया था राठी ने...."

" अरे बहन एक ही बात है, मजबूरी में करना पड़ा। "

यह कहकर सभी के मुखमण्डल पर एक मुस्कान आ गयी। शांति जी जिनके निवास पर यह महफ़िल जमी हुई थी कहती हैं, "बहु...ज़रा चाय चढ़ा दे....।"

प्रतिउत्तर में रसोई से आवाज़ आती है, "जी माँ.... अभी बनाती हूँ। और कुछ बना लूं सबके लिए।" शांति जी मना कर देती हैं उनकी सहेलियों की सहमति से।

बातों का सिलसिला फिर आगे बढ़ता है। " क्यों शांति...यह सब बहू ने बनाया है।" फिर एक गुजिया उठा ली जाती है।

शान्ति जी के उत्तर की प्रतीक्षा किये बगैर, एक और तीर चलता है, " अरे... बेचारी बहू तो नोकरी करती है, पढ़ी लिखी है शहर की... उसे कहाँ आता है सब, वो तो बेचारी शांति खटती रहती है दिन रात..."

"नहीं ऐसा नहीं है...वो भी सब सीख गई है...सब काम करवाती है मेरे साथ।" यह कहते हुए शांति जी रसोई में चाय लेने चली जातीं हैं।

उनके पीछे एक कटाक्ष और छूटता है....

"अब देख लो...चाय लेने भी खुद गयी है।"

"और देखा था बहू कैसे सूट पहन कर इठलाते हुए घूम रही है पूरे घर में। किसी का लिहाज़ ही नहीं।"

" हमनें तो यह भी सुना है, कुछ नहीं आता इसे घर भी हमेशा अव्यवस्थित रहता है। वो तो शांति है जो लगी रहती है। घर और बच्चों को संभालने। नहीं तो..."

"सही कह रही हो बहन, जब आओ तभी फैलारा पड़ा रहता है। और पिछली बार की बेस्वाद चाय का स्वाद तो अब तक मुँह से गया ही नहीं।" सभी ज़ोर से ठहाका लगा देतें हैं और शांन्ति जी के आने पर शांत हो जाते हैं।

"आ रही है चाय..." शान्ति जी कहती हैं।

तभी पीछे से हाथ में ट्रे थामें हुए बहुरानी आ जाती है। सभी को चाय थमाते हुए सबका हाल चाल भी पूछ लेती है।

"शान्ति तेरी बहू बहुत अच्छी है हमेशा हँसती मुस्कुराती रहती है, मिलनसार है।"

"और वो जैन साहब की बहू तो हमेशा मुँह चढ़ाए फिरती है। और हमेशा अपने मन की करती है।" चाय का कप उठाते हुए कोई कहता है। फिर सभी एक चुस्की लेते हैं और बातों का दौर आगे बढ़ता है।

बहुरानी ने शांति जी को मुस्कुरा कर देखा और अपने काम से लग जाती है। उसे पता था हर चुस्की में एक नई कहानी चलेगी अभी तो। कभी किसी की तो कभी उसकी।

पर किसी को उस चुस्की की पीड़ा नहीं दिखेगी। कि आग में वह कितना उबली। और उसी तरह कहानी का पात्र परिस्थितियों के बवंडर में किस प्रकार अपने आप को संभाले हुए है। खैर एक ठहाका गूंजता है... और शांति जी की आवाज़ भी, "नहीं मेरी मीरा बहू तो मेरी हर बात मानती है, और मुझसे पूछे बिना कुछ नहीं करती।"

सभी के मुख पर फिर एक कंटीली मुस्कान बिखर जाती है। और होंठो पर चाय का प्याला एक और चुस्की के लिए।














2 likes

Published By

Shubhangani Sharma

shubhanganisharma

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.