मेरे साहित्यकार

हिंदी दिवस पर उन लेखकों याद करना ज़रूरी है जिन्होंने कहीं ना कहीं हमें छुआ।

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Shubhangani Sharma
Shubhangani Sharma 14 Sep, 2020 | 1 min read

मुझे सिखाया जिन्होंने..

पढ़ना और लिखना, 

नमन हृदय से उन्हें,

उतरे आत्मा में

पढ़ा मैंने उन्हें जितना।।

पढ़ा जो रहीम कबीर को,

तो मैं नम्र बन गयी,

सौहार्द अपनेपन से,

मेरी भाषा संवर गयी।।

वीरता का रस मुझे

सुभद्रा जी ने सिखा दिया,

ना भूली वो बुन्देलों का गीत

जो आत्मा को भिगा गया।।

दुष्यंत जी का

आसमां में पत्थर फेंकना

इस कदर भाया हमें,

उनके हर अल्फ़ाज़ ने,

अब तक है लुभाया हमें।।

हरिवंश जी की हर कविता

अब तक प्रासंगिक है,

कोशिश करने वालों की

हर एक पंक्ति मन में तरंगित है।।

अमृत लाल जी का प्रकृति प्रेम,

सर्व विदित है,

सौंदर्य की नदी नर्मदा में,

उनकी व्यथा भी वर्णित है।।

प्रेमचंद जी की हर कथा की,

दिल पर गहरी छाप है,

हर किरदार लगता है यूँ

कि वह स्वयं आप है।।

रविन्द्रनाथ जी का तो ना कोई सानी है,

इन्हीं की एक शिष्या को पढ़ा मैंने,

जिनका नाम शिवानी है।।

शरतचंद्र जी का तो नायक,

सदैव नायिका रही।

उनकी नायिका सदैव

अपनी धुन में बही।।

भीष्म साहनी जी की तमस

भारत की तस्वीर बनी,

अनकहे गुनाहों की जागीर बनी।।

धर्मवीर भारती, सुमित्रानंदन पन्त

और कई अनछुए हैं अनंत।।

अनगिनत गोताखोर शब्दों के,

जिन्हें पढ़ा दिल से हमनें,

आत्मसात किया कुछ हद्द तक

उनकी बातों को,

अपने जीवन में।।



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Shubhangani Sharma

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