"माँ, बताओ ना आपकी विश (wish)...आप क्या करती???"
दिन भर इधर उधर मंडराते हुए ले देकर यही सवाल मेरे दिमाग मे चहल कदमी करता रहा। मैं जानती थी कि श्रेया की बातें काल्पनिक हैं। यदि ऐसा संभव होता तो क्या बात थी। पर मेरे मन का बच्चा उसकी बातों में खो जाना चाहता था।
पर उसका सवाल ज़रा पेचीदा था। यदि "time machine" होती तो मैं अपने जीवन के किस समय में जाना चाहूँगी। ज़ाहिर सी बात है बचपन में। पर उस समय में जाने के पीछे का कारण मेरे बचपन के सुख को भोगना तो कतई नहीं था। हालांकि यह बात श्रेया ने आज कही है। परंतु यह मैं पिछले 10 वर्षों से करना चाह रही थी।
जब भी अपने घर, हाँ जी, अपना घर, यानी मेरा ससुराल में अपने दैनिक कार्य करती, सास ससुर की सेवा करती, और अपनी सहनशीलता का परिचय देती तो एक टीस मन में रह रह कर उठती, " काश!! यही व्यक्तित्व मेरा पहले रहा होता, काश!! जितना मैं सबके के लिए करती हूँ उसका आधा मेरी माँ बाबा के लिए किया होता..."
बस यही सोचते सोचते आँखें नम हो गयीं, और कब गहरी नींद में खो गयी पता ही ना चला।
दूसरे दिन कुछ ज़्यादा निंद्रासन का सुख ले लिया, एक मधुर परिचित आवाज़ ने मुझे अचंभित कर दिया।
"शिवि...उठो कॉलेज नहीं जाना क्या? जल्दी उठो चाय रख दी है। ठंडी हो जाएगी।"
मैं आश्चर्य से बस उस सौम्य मुख को निहारती रही। फ़िर सहसा बिस्तर छोड़ कर माँ को लपक कर गले लगा लिया। "माँ, मुझे माफ़ कर दो। मैं आपकी कोई मदद नहीं करती। आपको कई बार जवाब भी दे देती हूँ। मैं, अच्छी बेटी नहीं हूँ..."
"शिवि, क्या हुआ? सब बच्चे ऐसे ही होते हैं, और तुम क्या मेरी मदद करोगी? मैं तुम्हें मौका ही नहीं देती। तुम जैसी भी हो हमें तुमपर गर्व है। और बेटा आगे जाकर फिर तुझे यही सब तो करना है। फ़िर तुम्हारे बच्चे होंगे और यह समय चक्र यूँही चलता रहेगा।"
"माँ, तुम मुझसे नाराज़ नहीं हो??"
"नहीं बिल्कुल नहीं, क्योंकि मैं माँ हूँ।"
और माँ ठहाके लगाकर हँस दी। मेरी टाइम मशीन ने पुनः वर्तमान का रुख़ कर लिया। जिसका सूचक था मेरे मोबाइल पर अलार्म....जो लगातार टनटना रहा था।
मैं, जान गई थी, मैं कहाँ थी।
जल्दी से उठकर अपने दैनिक कार्यों में लग गयी। फ़िर सासु माँ को चाय का प्याला थमाकर उनके पास ही बैठ गयी।
उन्होंने मेरा उतरा हुआ चेहरा देखकर पूछा, "क्या हुआ शिवि?"
"माँ की याद आ रही है, और उनकी चिंता भी हो रही है। वे अकेली हैं, उम्र भी हो रही है। अपने सारे काम स्वयं करने पड़ते हैं।"
तभी सासु माँ ने, बीच में टोकते हुए कहा, "चिंता मत कर पगली, उन्हें तुम जैसी ही बहु मिलेगी..."
उनकी यह बात सुनकर मुझे मेरे सारे सवालों का जवाब मिल गया। "अरे!! यही तो है हमारी टाइम मशीन...हमारे कर्म...जो हमारे भूत और भविष्य को बदलने के साथ साथ संवारने की भी क्षमता रखते हैं। हम जो देंगे वही पाएंगे। हमारे कर्म हमारे अपनों के भी काम आएंगे।"
बस अब मुझे प्रयास करना था, स्वयं को और बेहतर बनाने का। मेरी "टाइम मशीन" को सही दिशा में ले जाने का।
शुभांगनी शर्मा
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
शिक्षात्मक रचना
धन्यवाद अनुज🙏
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