नया इश्क़

शाम-ए-ग़ज़ल

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Shubhangani Sharma
Shubhangani Sharma 27 Jun, 2022 | 1 min read

ज़्यादा तो नहीं जानती तुम्हें... 

पर अंदाज़ तुम्हारा कुछ अलहदा सा है।।


अजनबी थे तुम पर जाने पहचाने लग रहे हो अब,

एक मुसाफ़िर हूँ मैं, और तू कारवाँ सा है।।


ख़ामोशी से रिश्ते निभाना तुम्हारी ख़ासियत है,

तुमसे जुड़कर दिल भी कुछ बेपरवाह सा है।।


बढ़ रहा है हर लम्हां इश्क़ हमारा, 

जो अभी कुछ नया नया सा है।।


शुभांगनी शर्मा

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Shubhangani Sharma

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