किसी दिन कभी, जब ये सोचते हैं... हम खुद को हर जगह, किस कदर खोजतें हैं।। कदम तो उठतें हैं, बस बढ़ने के लिए... कदमों को, अतीत के साये... फिर क्यों रोकते हैं।। हमसे तो मंज़िलें, ख़फ़ा सी रहती हैं। और हम बेवजह... राहों को कोसते हैं।। ठंडी बयारों से... हमें परहेज़ नहीं। पर क्या कहें हम... किन तूफानों से जूझते हैं।। ज़माने ने ज़ुबाँ, बंद कर रखी है हमारी। रहते हैं हम चुप से क्यों... हर पहर पूछते हैं।।
पूछते हैं
कुछ सवाल खुद से....
Originally published in hi
Shubhangani Sharma
23 Jan, 2021 | 0 mins read
#experiencea
#poem1
#1000poems
1 likes
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.