एक बार पांचों उंगलियों में एक होड़ लगी थी,
है कौन बेहतर बस यही दौड़ लगी थी।।
हूँ मैं बेहतर ! हूँ मैं बेहतर!
ये कह कहकर कोलाहल मचा दिया,
आसमान को उन्होंने सिर पर उठा लिया।।
मध्यमा का कहना था,
"भले ही मैं तुम सबके बीच में खड़ी हूँ,
पर गौर से देखो मेरी बहनों...
कद में तुम सबसे बड़ी हूँ।।"
सुनकर ये बात अनामिका से भी रहा ना गया,
कहा जो उसने किसी से भी ना सहा गया... बोली, " मेरा तो देखो नाम ही निराला है,
हक है मुझपर उसका जो प्यार करने वाला है।
शोभित मुझपर तो अक्सर, नगीने रहा करते हैं।
मुझपर हक पाने को तो प्रेमी लड़ा करतें हैं।।"
तभी रोबदार स्वर में तर्जनी भी बोली बीच में,
"हहहह... तुम दोनों तो बेवजह ही इठलाती हो... तुम तो सिर्फ शोभा ही बढ़ाती हो...
मुझे देखो.. आरोप प्रत्यारोप देने में बस मेरा ही काम है,
अपना वर्चस्व बनाने में मेरा बड़ा नाम है,
उठती हूँ सबसे पहले,
जब कोई आक्रमण करता है...
मेरे उठने से तो हर व्यक्ति डरता है।।"
सुनकर ये तो कनिष्का से भी ना रहा गया,
उसके अट्हास से तो सबका चेहरा उतर गया,
" मैं तो सबसे छोटी सबसे प्यारी हूँ,
ना काम का बोझ है मुझपर ना नाम का,
खुश हूं कि मैं सबसे न्यारी हूँ।।"
अलसाये से अंगूठे से अब ना रहा गया,
बिगड़े से स्वर में कुछ गंभीर कह गया,
" ठीक है तो मैं चलता हूं, मेरा क्या है...
मैं तो सिर्फ दिखाने के काम आता हूं..
वैसे भी कहाँ मैं किसी को भाता हूँ।
पर हाँ... जो जुड़ जाऊँ तुम सबके तो ताकत बन जाता हूँ।।"
सुन कर ये बात तो उंगलिया भी भौचक्की रह गईं,
गुस्से में न जाने वे क्या क्या कह गयीं...
जीवन का हर कार्य उनके साथ रहने से ही तो संभव है,
उन्हीं के एका होने से जीवन का वैभव है।
नृत्य की हर मुद्रा उनके साथ होने से सुंदर है,
कलम को जो थाम लें तो हर वर्ण में ईश्वर है।।
समझ गयीं वे, हम सब एक दूजे के पूरक हैं,
जो नहीं एक भी तो हम सब अधूरे हैं।।
Comments
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Wow so Beautiful
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