उसके पदचिन्हों को अपनी पहचान
तो बना लिया उसने, पर उसकी
परिचारिका बनने के सफर में उसने
अपना परिचय खो दिया।
"श्रीमती फलां फलां खालिस्थान"...
हर जगह सिर्फ इसी परिचय के
सामान के साथ खालीस्थान यथावत
रहता।
घर की नेमप्लेट पर, जीवन और घर
के मालिक का नाम। क्यों ना हो,
परिचारिका तो चाकरी के लिए होती
है हकदारी के लिए नहीं।
दस्तावेज़ उसके होकर भी उसके ना
लगते, श्रीमान फलां फलां हर जगह
शिरोधार्य रहते हैं।
सदियां गुज़र गयीं "फलां फलां"
का ताज पहने। एक दिन जब भार
अधिक हो गया, उससे जीवन की
गाड़ी आगे ना बढ़ पायी। उसने ताज
उतार कर अलग रख दिया। अब चहुँ
दिशाओं में हाहाकार मच गया। यह
अनर्थ आखिर कैसे हो गया?? बिना
"फलां फलां" के ताज के कोई
परिचारिका कैसे हो सकती है???
इसका अर्थ यह हुआ कि उसने
परिचारिका होने की उपाधि भी त्याग
दी। हाँ, शायद... पर फलां फलां
के सहयोगी हार नहीं मान सकते थे।
कई प्रयास किये उसे वापस ताज
पहनाने की। परंतु इस बार उसका
निश्चय दृढ़ था।
बहुत संघर्षों के पश्चात उसने आखिर
अपने परिचय का खालीस्थान भर
दिया। अब वह है सिर्फ वह जो वो
है, और जो वह होना चाहती है।
एक खालीस्थान.... पर भरा हुआ।
शुभांगनी शर्मा
परिचय
परिचय की खोज....
Originally published in hi
Shubhangani Sharma
12 Feb, 2021 | 1 min read
Symbolism
Respect
0 likes
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.