ज़ाया नहीं

अपने लिए जिये तो क्या जिये... तू जी ऐ दिल ज़माने के लिए।।

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Shubhangani Sharma
Shubhangani Sharma 30 Nov, 2020 | 1 min read
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ज़ाया नहीं होता कभी,

यूँ बेवजह मुस्काना।।

जीतते जीतते किसी की ख़ुशी के लिए,

हँसते हँसते हार जाना।।

किनारे पर बैठ क्या पायेगा रहबर, 

एक बार तो बेखौफ हो,

दरिया में उतर जाना।।

मुश्किल नहीं कभी किसी की,

उदासी चुरा लेना,

ना समेट पाओ जो कुछ,

तो खुद ही बिखर जाना।।

हर कोई पारस नहीं होता,

बस किसी जड़ में स्पन्दित हो जाना।।

खुद में ही खोये राहोगे क्या उम्र भर,

एक बार तो किसी का हो जाना।।

बस यूँही चुप, क्या साथ देगी,

खुल के ज़रा, थोड़ा तो फरमाना।।

शिकायतें खुद से कब तक करोगे,

हाज़िर है उसके लिए तो ये ज़माना।।

सुलझे रहने में ही खुदा की रहमत है,

क्यों बेवजह ही, बातों को उलझाना।।

रह जाना कभी कभी पास किसी के,

या कभी बांध तोड़ के बह जाना।।







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Shubhangani Sharma

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