इस बार ये दूरी हमें, बहुत सताएगी
मेरे हाथों में ही रहेगी राखी,
तुम तक ना पहुंच पाएगी।।
थोड़ी उदास तो वो भी रहेगी,
जो मेरे भाई की कलाई को
ना सजा पाएगी ।।
बुझी बुझी सी मुस्कान लिए,
मेरे घर का आंगन भी फुस फुसाएगा
“ क्या इस बार बहू मायके ना जा पाएगी??”
बच्चे पल्लू पकड़ कर कहेंगे,
“ मम्मा क्या तुम्हें मामा की याद ना आएगी??”
मामा तो अक्सर बाहर ही रहते हैं,
पर इस बार मां नानी के पास भी ना जाएगी??
ना तो बाई ( नानी ) के घर की चहल-पहल मिलेगी हमें,
ना मामा की दुकान की मिठास हम तक पहुँच पाएगी।।
मन थोड़ा उदास, थोड़ा व्यथित रहेगा मेरा,
हर क्षण बस याद तुम्हारी आएगी।।
इस बार क्या नौ भाईयों की बहन,
बिना राखी बांधे ही रह जाएगी??
तुम्ही बोलो मेरे भाई,
“ इस बार की राखी मुझे कैसे भाएगी??”
पर संतोष रखना होगा हमें,
तुम बस यूँही ख़ुशहाल रहो….
मेरे मन की राखी तुम तक ज़रूर पहुंच जाएगी ।।
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