रिश्वत....

काश ये छोटा सा दिन थोड़ा बढ़ जाये।

Originally published in hi
Reactions 2
514
Shubhangani Sharma
Shubhangani Sharma 14 Dec, 2020 | 0 mins read
A day will come when everything will be done.
अक्सर दिन को, 
थोड़ी रिश्वत दे दिया करती हूँ,
कि वो थोड़ा और बढ़ जाए। 
रातों के आगे थोड़ा पसर जाए, 
हम तो आज काम, 
समेट कर ही दम लेंगे, 
चाहे फिर रात ही हमसे, 
क्यों ना झगड़ जाए, 
ऐ दिन तू थोड़ा तो बढ़ जाए।।

कई लोंगों से...
मुलाक़ात नहीं हुई अरसे से, 
दिन से बोल देती हूँ... 
कुछ लम्हें चुराने को ख़र्चे से। 
मेरे अपनों का दीदार बस हो जाए, 
ये दिन थोड़ा और बढ़ जाए।।

शौक मेरे एक कोने में..
उदास बैठे हैं। 
इंतेज़ार में मेरे, 
कुछ खास बैठें हैं। 
इस दिन से गुज़ारिश है.. 
अपनी आज़माइश से मुकर जाए, 
मेरे कहने से थोड़ा और बढ़ जाए।।

मेरे वादे भी कुछ अधूरे हैं, 
अपनी चाहत से बस पूरे हैं। 
ना उनपर इल्ज़ाम.. 
धोके का चढ़ जाए। 
ख़्वाईश है मेरी... 
दिन तू थोड़ा और बढ़ जाए।।

बिखरे हुए कुछ एहसास, 
शब्दों से संवर जाए। 
मेरा रोम रोम.. 
खुशियों से भर जाए। 
ज़िन्दगी मेरी, 
थोड़ा और निखर जाए। 
तेरी खिदमत.. 
जो करती रहती हूँ सारा दिन, 
मेरा जज़्बा वो काम कर जाए। 
जो पंख लगा उड़ जाया करता है, 
तेरी आदत वो बदल जाए
काश ऐ दिन तू थोड़ा तो बढ़ जाए।।







2 likes

Published By

Shubhangani Sharma

shubhanganisharma

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.