आज वह पहली बार वह मुझे दिखी। वह फुदक कर कभी एक टहनी पर बैठती कभी दूसरी पर।
मैं अपने फ़ोन का कैमरा चालू कर उसके पीछे पीछे फुदकने लगी।
पर वह मुझे अपनी छवि अपने कैमरे में कैद करने का मौका ही नहीं दे रही थी।
मैं भी गुस्से में उसका पीछा करने लगी।
"आज तो मैं इसे अपने कैमरे में क़ैद करके ही रहूंगी।"
सहसा मेरा ध्यान मेरी ही बात पर गया।
क़ैद?? क्यों??
यही तो समस्या है... हम पलों को क़ैद करना चाहते हैं, नुमाइश के लिए, जीना नहीं।
बस फ़िर फ़ोन को एक ओर रख मैं उस पल में खो गयी।
स्वयं को उसकी स्वछंदता में ढूंढती हुई। उसकी हर क्रिया को मेरी मुस्कान की प्रतिक्रिया में आत्मसात कर लिया, और वो पल अमर हो गया।
शुभांगनी शर्मा
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ख़ूबसूरत
आभार चारु
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