मैंने ध्वस्त कर दिया वो बातों का पुल, जो अक्सर टूट जाता था छोटे से तूफान से।।
मैं उसे फिर जोड़ लेती थी प्यार और इत्मिनान से।।
क्योंकि मुझे जाना होता था उस पार, जहाँ एक दुनिया और थी, मुझे इश्क़ था उस जहांन से।।
पर मैं थक चुकी हूं उसे जोड़ते जोड़ते, जोड़ती मैं हूं, और लगते तुम हो मेहरबान से।।
सोचा चलो आज ये पुल ध्वस्त कर दिया जाए, हो सकता है, कोई रास्ता और हो तुम्हारे पास..गर इश्क़ हो तुम्हें भी मेरे इस छोटे से जहांन से।।
फिर भी तुम उदास ना होना, मैंने कुछ अवशेष तुम्हारे लिए छोड़ रखें हैं... आना तुम बड़े ध्यान से।।
आँखों और एहसासों से काम ले लेना, गर लव्ज़ ना निकलें ज़ुबान से।।
जो ज़िद्द पर अड़ा हो मेरा मन, तो तुम ना मुँह फ़ेर लेना गुमान से।।
ये पुल ध्वस्त ज़रूर है, पर ज़रूरत है हमारी, क्योंकि रिश्ते पाक होते हैं गीता और कुरान से।।
गुज़ारिश है जोड़ लेना इसे भी, जैसे जोड़ते हो सब कुछ, चाहे जोड़ो किसी तुम्हारे ही काम से।।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Wahh
Nice poem
Thank you so much
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