जागीर

जागीर

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Shubhangani Sharma
Shubhangani Sharma 28 Jun, 2025 | 0 mins read
Emotions

जागीर

राह हुई नाराज़ मुसाफिर से

हुए लोग कैसे काफ़िर से।।

मालिक बन गए ज़मीन के,

पर बेदख़ल हुए दिल की जागीर से।।

हुए हैं अजनबी से अपने ही रिश्ते,

जुड़ते नहीं दिल अब कहीं तकदीर से।।

अब न रही वो लौ नज़रों में,

छिन गया नूर शायद ज़मीर से।।

नज़रें मिलीं तो जज़्बात छुपा लिए,

अब दिल नहीं खुलते दिल की ताबीर से।।

हर शख़्स लगा जैसे आईना हो,

पर टूटे हुए हैं वो भी तक़दीर से।।

जिन्हें समझा था अपना साया कभी,

वो निकल गए रौशनी की तासीर से।।

अब दोस्ती भी सौदों में ढलती है,

मिलती नहीं कहीं वो बात ज़मीर से।।


शुभांगनी शर्मा


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Shubhangani Sharma

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