अपने आप को हमनें नकल बना दिया,
असल रब सा था, अब एक *कल बना दिया।।
ज़िन्दगी गुलज़ार हो सकती थी,
भागते हुए पटरी पर, बोझिल बना दिया।।
ये दौड़ इस क़दर दौड़ी, कि खो दिया ख़ुद को,
कि अब नकल को ही असल बना दिया।।
*कल - मशीन
शुभांगनी शर्मा
अपने आप को हमनें नकल बना दिया,
असल रब सा था, अब एक *कल बना दिया।।
ज़िन्दगी गुलज़ार हो सकती थी,
भागते हुए पटरी पर, बोझिल बना दिया।।
ये दौड़ इस क़दर दौड़ी, कि खो दिया ख़ुद को,
कि अब नकल को ही असल बना दिया।।
*कल - मशीन
शुभांगनी शर्मा
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