खुल कर जी ले ज़रा

खुशी, खुश रहने से मिलती है... बाहर से नहीं मुसकान भीतर से खिलती है।

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Shubhangani Sharma
Shubhangani Sharma 07 Sep, 2020 | 1 min read

चुरा लेना लम्हें कुछ,

जिंदगी के झरोखे से।

कुछ में रस हो भरा,

कुछ हो थोड़े फीके से।।

सहेज कर रख लेना उन्हें, 

दिल के संदूक में। 

थोड़े बेतरतीब से, 

और थोड़े सलीके से।। 

कभी तो बेपरवाह बन जा,

थोड़ी ऐ- ज़िन्दगी... 

कि हंसना ज़रा सीख ले, 

बच्चों से लतीफे पे।। 

खुद को खुला छोड़ दे कभी... 

करीनें से खिंची लकीरों से।

थक नहीं जाती क्या तू...

अपने ही कसीदों से।। 

एक चौखाने में बंद होना... 

नहीं है तेरी किस्मत। 

चल राह पर ज़रा अकेले...

बेफिक्र होना सीख ले...

आज थोड़ा फकीरों से।।

खुल कर जी ले ज़रा,

बाहर आ अपने पिंजरे से।

जी लिया बहुत तूने,

अपने बनाये सलीके से।।


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Shubhangani Sharma

shubhanganisharma

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Jatin pal · 4 years ago last edited 4 years ago

    👌👌👌

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