बात कुछ और थी...

हार ना जाते हम, तो बात कुछ और थी...

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Shubhangani Sharma
Shubhangani Sharma 19 Jan, 2021 | 0 mins read
Need to be constant and consistent when it comes to relationship
हमें ज़िद्द थी,
एक दूजे के साथ की,
जो वजह होते जीने की, 
तो बात कुछ और थी।।

उसके लिए मैं एक थी,
मेरे लिए सिर्फ वही सब था..
जो वाकिफ़ होते इरादों से...
तो बात कुछ और थी।।

मेरी पेशानी के बल,
उसे बहुत खलते थे...
मेरी परेशानी भी जान लेता जो,
तो बात कुछ और थी।।

हँसते हँसते अक्सर…. 
मैं रो दिया करती थी।
ज़ुबाँ मेरे अश्कों की जो समझता,
तो बात कुछ और थी।।

अच्छा हुआ जो वक़्त, 
बेरहम हुआ हमपर,
जो साथ देता हमारा,
तो बात कुछ और थी।।

मैं जोड़ते जोड़ते धागों को, 
अक्सर जीत जाया करती थी।
जो हार ना जाती एक बार,
तो बात कुछ और थी।।


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Shubhangani Sharma

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