कुछ जानी पहचानी,
पगडंडियों पर चलकर,
कच्चा सा बचपन ढूंढती हूँ।।
बिखरी सी हँसी, होंठों पर सजी,
ऐसा वो शख़्स ढूंढती हूँ।।
पैरों में नदी, जो बहती चली,
ऐसी मनमानी ढूंढती हूँ।।
हाथों में सजा, हो सारा जहाँ,
ऐसा रंग वो आसमानी ढूंढती हूँ।।
बेफिक्री का समंदर, खुद के सिकंदर,
ऐसा वो मंज़र ढूंढती हूँ।।
कच्चा सा बचपन, वो मस्त कलंदर,
मनमोहक सुंदर ढूंढती हूँ।।
खेल मेरे छोटे छोटे,
सिक्के मेरे थोड़े खोटे,
हरपल जो मेरे साथ होते,
ऐसा याराना ढूंढती हूँ।।
लकड़ी पत्थर, वो खुली सी छत पर,
गुड़ियों का आशियाना ढूंढती हूँ।।
छोटे से दिन, लंबी सी रातें,
अनवरत ढ़ेर सारी बातें ढूंढती हूँ,
राह अपनी, दरख़्त अपने,
पगडंडियों पर अपना ठिकाना ढूंढती हूँ।।
हर शाख पर, हर मोड़ पर,
मेरा कच्चा सा बचपन ढूंढती हूँ।।
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