अरे यह क्या हुआ? भू लोक, स्वर्ग लोक, पाताल लोक, ब्रह्म लोक, समस्त दिशाओं में हाहाकार मच गया।
प्राण वायु ने दम तोड़ दिया.... यह कैसे संभव है???
"यम देव की चेष्ठा कैसे हुई, मेरी बनाई प्रकृति की सबसे अमोल रचना के प्राण हरने की।" ब्रह्म देव तमतमा जाते हैं। उनका सौम्य रूप बदल जाता है। सूचना यम देव के पास भी पहुँच चुकी थी इसलिए वे भी चित्रगुप्त के साथ वहां उपस्थित हो जाते हैं।
वे अपनी सफ़ाई देते हुए कहते हैं, "परमपिता!! मैंने प्राण वायु के प्राण नहीं लिए। ना ही वह यम लोक में है।"
"तो फ़िर वह कहाँ है... उसकी अनुपस्थिति में पृथ्वी लोक में त्राहि त्राहि हो रही है। कौन दोषी है उसके पीछे पता लगाया जाए??" ब्रह्मदेव कहते हैं।
बहुत छानबीन के पश्चात कुछ अपराधियों को उपस्थित किया जाता है। वह है वायु में उपस्थित अन्य तत्व। कार्बन डाइऑक्साइड से उसके बढ़ने का कारण पूछने पर वह फ़फ़क कर रो पड़ा। कहने लगा, "प्राणवायु मेरी बहन है, उसके बिना तो मेरा भी कोई अस्तित्व नहीं। मेरी मात्रा बढ़ने का कारण तो जंगलों और पेड़ो का विलुप्त होना है, और यही कारण प्राणवायु का विलुप्त होना भी है।"
"उन्हें भी उपस्थित किया जाये...."
"परमपिता पर वह तो पृथ्वी पर बचे ही नहीं हैं।"
"फ़िर उनका दोषी कौन है???"
"दोषी तो आपकी ही संतान है...और फ़ल भी उसी को मिल रहा है।"
अब परमपिता निरुत्तर थे....
क्या ये ही है उन्नति का मापदंड... क्या मनु और सतरूपा इसी दिन के लिए बचे थे??
क्या वाकई समय आ गया है फ़िर पृथ्वी के जलमग्न होने का??
निरुत्तर से समस्त लोगों के प्राण उखड़ने लगे....
और प्राणवायु कहीं दम तोड़ रही थी....
शुभांगनी शर्मा
(नोट: लिखना बहुत कुछ चाहती हूँ... पर मन वाकई अनमना है। चारों तरफ देखो तो स्वयं की साँसे रुक सी जाती हैं।)
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
सच 😭
😢😢
संदेशप्रद कथा
Please Login or Create a free account to comment.