मैं रहूंगी

स्त्री हर युग, हर संस्कृति में एक गौरव एक नींव रही है। उसके अस्तिस्त्व को कोई नहीं नकार सकता।

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Shubhangani Sharma
Shubhangani Sharma 14 Nov, 2020 | 0 mins read
I am a women, I am complete.

उधेड़ो जितना उसका दुगुना बुनूँगी,

सुनूँगी सब पर ना सुन्न मान रहूंगी,

गिराओ चाहे जितना मैं ना गिरूंगी,

सदैव मैं थी, मैं हूँ, मैं रहूंगी।।

अपनी ज़ुल्फों को बांध लूं या खोल लूं,

अपने एहसासों की कीमत लगाऊं ,

या तुझे बेमोल दूँ, है ये मुझपर,

मैं कितना पिसकर कितना रचूंगी,

पर ना मैं एक ही रंग रहूँगी,

मैं सतरंगी थी, मैं हूँ, मैं रहूँगी।।

मुझे जो महसूस करो तो,

अथाह तुम्हारे भीतर मिलूंगी,

तुम चाहे नकारो जितना,

जहां टटोलोगे वहां मैं ही मिलूंगी,

हर कोने हर शय में ,

मैं थी, मैं हूँ, मैं रहूंगी।।

मिट्टी से बनी हूँ मिट्टी में ही मिलूंगी,

ना लगूँ खूबसूरत चाहे,

पर हर वक़्त अनमोल रहूंगी,

यूँ ही अपने मन की रानी बनकर रहूँगी,

पर मैं थी तुम्हारी, मैं हूँ, मैं रहूँगी।।

बिछ जाऊंगी, पिघलूंगी,

पर ना गिर कर रहूँगी,

नए सांचे में भी ढल जाऊंगी,

अस्तिस्त्व की चादर फिर भी ना छोडूंगी,

क्योंकि मैं थी, मैं हूँ, मैं रहूँगी।।

प्रेम, वात्सल्य, करुणा का गहना,

हर पल पहनूँगी,

पर आड़ में इसके ना खुद को छलूंगी,

तोलूंगी और अपने हक़ की बात भी कहूंगी,

क्या करूँ मैं थी मैं हूँ मैं रहूँगी।।

तुमको चाहूंगी, हर रस्म निभाऊंगी,

पर तुमपर ना आश्रित रहूँगी,

अखरूँगी तुम्हें क्योंकि मैं आज़ाद रहूँगी,

फिर भी तुमसे जुड़कर रहूँगी,

मैं जैसी थी, जैसी हूँ, वैसी ही रहूँगी।।

हूँ मैं एक, एक ही रहूँगी,

निश्चल, निरविकार पर ना निराधार रहूँगी,

नींव हूँ मैं गहरी,

हर दम भविष्य की पहरी रहूँगी,

सहारा क्या कोई देगा मुझे,

मैं हूँ अड़िग, एक पथिक,

चिरकाल यूँही बहती रहूँगी,

संस्कृति का गौरव,

मैं थी, मैं हूँ ,मैं रहूँगी।।









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Shubhangani Sharma

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