खालीपन बस पसरता जा रहा है ज़ेहन में,
दिल से दिमाग में, दिमाग से फिर रूह को लपेटता....
खालीपन के कफन में।।
कुछ अजीब सा एहसास है,
जो कुुुछ महसूस करने की ख्वाहिश ही नहीं,
बस सुन्न सा हो गया है बदन मेरा,
कि पूूूछता है हर रोम मेरा कितना वक़्त
है.....
आज़माईश-ए-दफ़न में।।
तिनका तिनका ताउम्र जोड़ते निकला,
आज रह गये बस खाली हाथ ,
ज़िन्दगी की तपन में।।
मुस्कुराहट ही मेरी बस मेेेेरी अपनी थी ,
ज़माने ने लेेना चाहा उसे,
अपनी ही जलन में। ।
तुम्हें तो बस मुुँह उतार कर बैैठना भाता है बहुत,
धूप को भी आने दो भीतर,
कि सन्नाटा और गहरा जाएगा सीलन में ।।
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सुन्दर
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