टिटलु

प्रेम हमारे जीवन को किसी ना किसी रूप में छू ही लेता है। ऐसी ही एक प्रेम कहानी।

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Shubhangani Sharma
Shubhangani Sharma 16 Apr, 2021 | 0 mins read
I miss you #Summershortstories

विवाह उपरांत जब मैं अपने नए घर आई ज़ाहिर सी बात है, नए रिश्तों में बंध गयी। सबकुछ नया था, और अजीब भी, कुछ लोग, चीज़े, और बातें मुझे पसंद थी और कुछ नापसंद।

पर एक रिश्ता और मिला मुझे। जो मुझे बिल्कुल पसंद नहीं था, वह था "टिटलू"। एक पालतू कुत्ता, जो मेरे नए घर में था। उसकी छवि तो मनमोहक थी पर मुझे उससे डर लगता था और घृणा भी होती थी।

मैं जहां जाती वो मेरे साथ जाता, रसोई में काम करती तो दरवाज़े पर खड़ा रहता, भोजन करती तो सामने बैठ जाता, यहां तक कि नैसर्गिक क्रियाओं तक के लिए मुझे अकेले नहीं जाने देता। मैं परेशान हो गयी।

पर धीरे धीरे मुझे उसकी उपस्थिति की आदत हो गयी और यक़ीन भी की वह मुझे असीम प्रेम करता था। मैं उसकी आँखों में देख सकती थी। वह टकटकी लगाकर मुझे देखता रहता कि एक बार मैं उसे अपने पास बुला लूं। खाना भी तभी खाता जब मैं उसे अपने हाथ से देती और सामने बैठती।

वह एहसास ही कुछ ख़ास है, किसी के लिए इतना आवश्यक होना। मुझे भी उससे प्रेम हो गया। फ़िर एक दिन उसके समक्ष एक नया प्रतिद्वंद्वी आया, मेरी बिटिया। शुरू में उसे ईर्ष्या तो हुई परंतु प्रेम का नियम है कि प्रेमी की हर प्रिय वस्तु हमें भी प्रिय लगती है। इसलिए उसने मेरी बिटिया को सहर्ष स्वीकार कर लिया। टिटलू ने उसका भी उतना ही ध्यान रखा जितना मेरा रखता था।

समय अपनी गति से व्यतीत होता गया, अब मैं दूसरी बार माँ बनने वाली थी। परंतु टिटलू का स्वास्थ्य बिगड़ता जा रहा था। वह कहीं भी शौच कर देता, खाना नहीं खाता, सोता रहता.... मुझे बहुत गुस्सा आता उसपर। यदा कदा उसे फटकार भी देती... पर वह अपने स्नेहिल नेत्रों से मुझे देखता रहता।

मैंने उससे कहा, "टिटलू, तुम्हें जाना है क्या? दूसरे बेबी के साथ नहीं खेलोगे क्या?"

कभी कहती, "ज़्यादा तकलीफ़ में हो? ठीक है चले जाओ... पर थोड़ा सब्र रखो... बेबी से मिल तो लो कम से कम..." और झुंझला जाती। अपनी बेबसी पर, कि मैं उसे रोक नहीं पाऊँगी।

फिर वह दिन भी आया जब मुझे हॉस्पिटल जाना था। मैंने जाते हुए उससे कहा, "मैं आ रही हूँ कहीं जाना नहीं, और तानी (मेरी बिटिया) का ख्याल रखना।"

उसने मेरा कहा माना। जब पुनः हाथों में नए जीवन को लेकर आई तो बुरे स्वास्थ्य से ग्रसित टिटलु में जैसे एक नई ऊर्जा आ गयी। वह प्रफुल्लित हो चक्कर लगाकर नाचने लगा।

पर वह उसका अंतिम नृत्य था। मेरे घर आने के बारह दिन पश्चात वह परलोक सिधार गया। उसने अपना वचन, जो उसकी गहरी काली आंखों ने किया था, वह निभाया।

परंतु मैंने उसके अंतिम दर्शन नहीं करने का निर्णय लिया। मैं अपने कमरे में ही रही। क्योंकि मुझे मृत नहीं जीवित "टिटलु" की स्मृति को जीवंत रखना था अपने हृदय में।

उसके अपनत्व और प्रेम की कमी सदैव रहेगी। प्रेम का यह रूप सबसे अनूठा है मेरे लिए।

"टिटलु तुम्हारी बहुत याद आती है।"


शुभांगनी शर्मा









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