बहस छिड़ी दुनिया में देखो, किस पथ ये चंचल मन किसका हो जाये...
रंग जो उज्ज्वल हो तो बेहतर, तन की झिलमिल में मन भटकाए।।
काली सूरत कब किसको भायी... रात अंधेरी ना किसी को ललचाये....
मनमुग्धा रजनीगंधा की खुशबू, कालिमा को भी हर जाए।।
कौनसा ऐसा रंग है बोलो जिसमें सारे रंग समाये... जिस रंग से भी जुड़ जाए, वो रंग खिल दुगुना हो जाये।।
श्याम के रंग में देखो तो, सारे संताप समाय... रंग कारा, इतना है कोरा, हर पाप को हरता जाए।।
मैं काला, ना मेरा मन काला, फिर क्यों मोहे सुख से बिनसाये... गोरे से जो ना पायेगा, उतना ये काला दे जाए।।
काला काजल, काला कोयला, सुंदरता व सहनशीलता का पर्याय...
सदियों तप हीरा बन जाये, ऐसा कोयला काहे बिसराये।।
गोरा रंग देख के काला देखो मंद मंद मुस्काये, मैं तो तुझपर चढ़ जाऊँगा, पर मैं पक्का इतना जिसपर कोई रंग चढ़ ना पाए।।
Comments
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सुंदर👌👌
wao
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