ठहराव की चाह

जीवन एक संघर्ष है...

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Shubhangani Sharma
Shubhangani Sharma 08 Feb, 2023 | 1 min read
Struggle

ठहराव की चाह में, मैं कहीं ठहरा नहीं।।


मंज़िलें भी मिली हर मोड़ पर... 

पर मुसाफ़िर का कहीं डेरा नहीं।।


टक्साल सी सोच में,

उलझी रही ये ज़िन्दगी,

जाना अब मैंने चमकते सिक्कों में...

कहीं सुकून का सवेरा नहीं।।


टूटा हूँ हज़ारों बार...

एक बार फ़िर सही।

ग़म के साये में मेरा बसेरा नहीं।।


मैं तूफानों के बीच,

मिलूँगा यहीं खड़ा...

क्योंकि सब्र का लिबास,

मैंने कभी छोड़ा नहीं।।


ठहराव की चाह में, मैं कहीं ठहरा नहीं।।

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