पर्याय

माँ एक दुआ की तरह होती है, जिसका कोई पर्याय नहीं।

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Shubhangani Sharma
Shubhangani Sharma 27 Aug, 2020 | 1 min read



सुबह 6 बजे फोन की घंटी टन टनाती है...

अरे यार कौन है जो चैन से सोने भी नहीं देता।

.................

मोबाइल पर नाम देखते ही ऋषि झल्ला जाता है।

“क्या है मां?? जानती हो मैं रात में देर तक काम करता हूँ। सुबह अलार्म से पहले आप फोन टन टना देती हो। मैं अभी जिंदा हूँ। कुछ होगा तो मैं खुद फोन कर दूंगा।"

दूसरी तरफ मां व्यथित हो कहती है, “ बेटा, ऐसा क्यों कह रहे हो?? भगवान करे तुम्हें मेरी उम्र लग जाए। वो तो मैं पूछ रही थी…………..”

मां के शब्द बीच में ही रोकते हुए ऋषि कहता है, “हां हां जानता हूँ…….उठ गए क्या?? नाश्ता करके जाना, आराम से जाना, समय पर खाना लेना, वगैरह वगैरह।"

मां सकुचाते हुए कहती है, “बेटा! वो तो मैं इसलिए कहती हूँ क्योंकि मुझे तेरी चिंता रहती है। तू इतना दूर जो है मुझसे।"

“ माँ मैं बच्चा नहीं हूं। मेरी नींद रोज़ रोज़ खराब कर देती हो। फिर दिन में भी दस फोन करती हो। प्लीज् मुझे बख्श दो।"

माँ रुआँसी हो कहती है, “ठीक है बेटा। अपना खयाल रखना।"

ऋषि पैर पटकता हुआ बिस्तर से उठता है और तैयार हो कर घर से निकल जाता है।

दिन भर ऋषि अपने कार्य में व्यस्त रहता है और घर आ कर थक कर सो जाता है।

दूसरे दिन—

आज सुबह कोई फोन नहीं बजता। सात बजे अलार्म बज बज कर बंद हो जाता है। दरवाजे पर किसी की दस्तक से ऋषि हड़बड़ाकर उठता है। “ अरे ये क्या 8 बज गए। ज़रूर दूध वाला होगा।"

“शुक्र है समय पर आंख खुल गयी। अभी भी एक घंटा है हो जाऊंगा तैयार।" ऋषि ने स्वयं से बात करते हुए कहा।

वह जल्दी जल्दी तैयार हो जाता है। पर जल्दबाजी में चाय नाश्ता सब रह जाता है। वह पार्किंग में से गाड़ी निकालने के लिए जाता है तो वह भी पंक्चर रहती है।…….. ऋषि मन ही मन कहता है , " उफ्फ आज क्या हो रहा है, टैक्सी लेना पड़ेगी । कंगाली में एक्सट्रा खर्च।"

जैसे तैसे वह टैक्सी लेकर काम पर पहुंचता है। रास्ते भर उसके दिमाग में एक ही बात चलती रहती है कि, “ आज माँ का फोन क्यों नहीं आया??”

ख़ैर, जो भी हो…. आज बहुत काम है…..

सुबह से शाम हो गई। ऋषि का आज हाल बेहाल हो गया। दोपहर में काम की वजह से खाना भी भूल गया। पेट के साथ साथ दिमाग भी खराब हो गया।

पर आज माँ का फोन………….??????

यह क्या?? आज उसे माँ की इतनी याद क्यों आ रही है। वह तो आज बहुत व्यस्त था फिर भी……

अपने दोस्त के साथ वह घर पहुंचता है। जूते और कपड़े फेंक कर वह माँ को फोन करता है। 

“ माँ…कहाँ हो आप??”

माँ सहजता से कहती हैं, “घर पर और कहाँ?”

ऋषि बेचैन हो कहता है, “ माँ आज अपने फ़ोन नहीं किया एक बार भी?? क्यों??"

माँ धीमे स्वर में कहती हैं, “ बेटा सोचा तू परेशान हो जाता है…………..इसलिए।"

ऋषि माँ को टोकते हुए कहता है, “ माँ बस करो। मैं समझ गया तुम्हारी फिक्र में दुआ शामिल है, मेरे दिन की अच्छी शुरुआत की।"

फिर थम कर कहता है, “ तुम मुझसे इतना दूर हो पर मेरे जीवन की डोर और मेरे कदम की हर हरकत तुमसे जुड़ी है माँ। मुझे माफ़ कर दो।"

दूसरी ओर माँ के होंठों पर मुस्कान और आंखों में आंसू झलक आए।

ऋषि के मन में एक ही विचार गुंजायमान था कि माँ का कोई पर्याय नहीं है।



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Shubhangani Sharma

shubhanganisharma

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Pramod D.Naik · 4 years ago last edited 4 years ago

    Soooooooper hai. Very Nice

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