उम्मीद की फसल
एक अरसा बीत गया... आंसुओं को बाँधे हुए... यह सोचते हुए वह अपने खेत को निहार रहा था। परिवार को तो ढांढस बांध देता ख़ुदको मज़बूत दिखाकर पर ख़ुद टूट रहा था।
सहसा आसमान ने रंग बदला और एक बूंद उसके ऊपर गिरी, फ़िर दूसरी। इससे पहले कि बादल झरझर करते... उसके आँखों का बाँध टूट गया और वह मुस्कुरा दिया। इस साल फ़िर उम्मीद की फसल लहरायेगी ज़रूर।
Paperwiff
by shubhanganisharma