Shubhangani Sharma
Shubhangani Sharma 16 Dec, 2020
मन की आवाज़
मेरा व्यथित मन चीत्कार कर रहा था... ये क्या किया तुमनें? ईश्वर के घर को नष्ट किया तुमनें? घोर अपराध, सारा खज़ाना लुटा दिया तुमनें? मैं क्षुब्ध, " अब क्या किया जाए?" तभी मन फिर बोला, " जो बचा है, उसे तो पूरा बचा लिया जाए।" " हाँ सही तो है, अभी भी वक़्त है, मैं ईश्वर के घर, अपने तन को फिर से सेहत के ख़ज़ाने से भर दूंगी।"

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by shubhanganisharma

16 Dec, 2020

सेहत का खज़ाना

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