Shubhangani Sharma
Shubhangani Sharma 25 Nov, 2020
सफ़र
एक अरसे से चला आ रहा है, ये कैसा सफर है मेरा, जिसकी कोई मंज़िल नहीं।। सदियों से बहती आ रहीं हूं, दरिया की तरह.... फिर भी मिलता कहीं साहिल नहीं।।

Paperwiff

by shubhanganisharma

25 Nov, 2020

शायरी

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