Shubhangani Sharma
Shubhangani Sharma 28 Nov, 2020
लहज़ा और लिहाज़
" अरे सुन तो कहां जा रिया है भाई, थोड़ा रुक तो, मैं बाज़ार से गुज़र रिया था तो तू दिखा तो ठहर गिया।" जवाब ना पाकर वह फिर बोला, "क्या खाँ नज़रअंदाज़ कर रिया है क्या यार को???" अबकी बार जवाब मिला कुछ ऐसा, " भाई यार मैं तुझसे बच कर निकलना चाह रहा था, तेरी बोली मुझे पसंद नहीं है, तेरी वजह से मेरे सारे दोस्त मुझसे कटते जा रहें हैं।" "यै रई मियां!! उड़ा लियो मज़ाक़... हम तो ऐसे ही बोलेंगें। भाई ठेठ भोपाली हैं.. ना तो लहज़ा छोड़ेंगे ना लिहाज़।" यह कहकर दोस्त को गले लगा लिया, और खुद रुख़्सत हो गया।

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by shubhanganisharma

28 Nov, 2020

दोस्ती

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