Shubhangani Sharma
04 Oct, 2020
अति दीर्घ कथा- समर्पण
क्या कहूँ.... निःसंदेह वो चिल्लाई होगी...
रोई होगी.... हर आहट पर उम्मीद भी पायी होगी, कि शायद कोई मदद का हाथ आएगा.... हर प्रतिरोध पर लगा होगा कि शायद इस बार वो जीत जाएगी। पर वो क्या जानती थी कि इस बार भी वो हारी हुई ही रहेगी। खुद से, समाज से, शरीर से.... कोई उसका साथ ना दे पाएगा। अब भी प्रदर्शन होगा, प्रतिरोध होगा...... पर वो हार चुकी है, क्योंकि..... पहले उसकी अस्मिता हारी थी और अब उसकी आत्मा। क्योंकि उसने समर्पण नहीं किया ना पहले ना अब....... क्या कहूँ???
Paperwiff
by shubhanganisharma
04 Oct, 2020
एक और निर्भया
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