Shubhangani Sharma
Shubhangani Sharma 02 Nov, 2020
प्रेम दीप
असंख्य ईर्ष्या, घृणा, क्रोध, निराशा, का अंधकार हर ओर हो चाहे व्याप्त, करने प्रदीप्त जग को सिर्फ एक प्रेम का दीप ही है पर्याप्त।।

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by shubhanganisharma

02 Nov, 2020

अंधेरे से उजियारे की ओर

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