भवरे का बगीचा

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Shorabh Bairagi
Shorabh Bairagi 28 Apr, 2020 | 0 mins read

तूने अभी तक उस गुलाब को संभाले रखा हैं,

हमारी यादों के स्लैब को दबाए रखा है।

सूखा हुवा गुलाब डायरी के कोरे पन्नो में,

विरह में इस कदर मुरझाया होगा।

खोलती हो जब डायरी तुम तो तुम्हें,

आज भी हमारी खुशबू महसूस करता होगा।

उसकी सुर्ख लाल पत्तियों ने रंग गवाया होगा,

पर आज भी तुम्हे उसने हमारी याद में सताया होगा।

उसकी तरह टूटकर शाख से तुम भी मुरझाई हो,

क्या तुम भी किसी भवरे के बगीचे को छोड़ आई हो।

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Shorabh Bairagi

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