मैं नहीं जानती वो मेरी कौनसी कमियाँ हैं जिनकी वजह से तुम मुझसे दूर हो रहे हो और न समझ पा रही हूँ अपने उन भावों को जिनसे तुम्हें ये एहसास हुआ की अब मैं बदल चुकी हूँ…
मैं जानती हूँ अब जब तुम मुझे देखते हो तो ढूंढ़ते हो अपनी पुरानी प्रेमिका जो कुछ नहीं देख पाती थी तुम्हारे सामने…और अब जो भी मैं हूँ यकीन मानो बता भी नहीं सकती कि ऐसा बनने में कितनी बार सब मरा है मेरे भीतर…और सच कहूँ तो मुझे अब अब मैं ऐसे ही पसंद हूँ…और शिकायतों का क्या है वो तो हमेशा किसी न किसी को रहेंगी ही …तुम्हें भी तो शिकायत थी मेरे भीतर मर चुकी उस पुरानी प्रेमिका से की वो सिर्फ तुम पर निर्भर क्यूँ हैं…तुम्हारे अलावा उसका कोई लक्ष्य क्यूँ नहीं और अब देखो मैं बन गई हूँ वैसी जैसे चाहा था तुमने पर अफ़सोस तुम्हें तो अब भी कई शिकायतें हैं…मेरे वक़्त न देने की, रूठ कर न मनाने की, अकेले रह लेने की या यूँ कहूँ ये जो विद्रोही मजबूत लड़की मैं बन रहीं हूँ मैं जानती हूँ उसे अपनाना हर आदमी के लिए अब संभव नहीं है...
पर बस तुमसे कहना था की मैं चाहे जितना भी बदलूं जो नहीं बदलेगा वो है मेरा तुम्हारे प्रति प्रेम ❤️
मैं चाहूँगी तुमसे कि तुम उन शिकायतों के पार उस लड़की को देखो जो ढेर सारे काम करके धक्के खाते हुए उस स्टेशन तुम्हारी ट्रैन से पहले पहुँच गई…उसने वो हर मौका खास बनाया जितना उसके बस में था या शायद उससे ज्यादा ही…चाहे वो अपने हाथों में तुम्हारे लिए कोई प्रेम संदेश लिखना हो, कुछ मीठी टॉफीयाँ या हो ढेर सारे छोटे छोटे तोहफ़े जो वो अलग अलग शहर से सिर्फ तुम्हारे लिए लाई थी और उसने कई महीने से वो संभाल कर रखे थे सिर्फ तुम्हारे लिए ❤️…उसके प्यार का अंदाजा तो तुम उसके तोहफ़े देने के तरीके से ही लगा लेते…. कैसे उसने सजा दिया था उन्हें पलंग पर…और पहनाई थी एक कागज़ की अंगूठी…उसके तोहफ़े छोटे सही मगर उसका दिल बहुत बड़ा था…यकीन मानो वो न जाने कितने भाव और ज़ख्म अपने भीतर लेकर तुमसे मिलने आती है और वो कब कैसे उभर आते हैं उसे खुद भी सुद नहीं रहती…
मैं बस इतना कहूँगी जब भी तुम्हें मुझसे रंजिशें होने लगें उस लड़की को याद करना जो अपने महीने की तनख्वाह सिर्फ एक दिन में तुम्हारे साथ खर्च कर देती है…हाँ वही लड़की जो अपनी जरूरत की चीजें लेने में भी 100 बार सोचती है.. और प्रेम देखो की ये ख़र्चा उसे खटकता भी नहीं वो तो और मेहनत करती है की तुम्हें राजकुमारों की तरह रख पामैं चाहूँगी तुम मेरी ख़ामियों से नज़रें हटाकर मेरे प्रेम पर ध्यान दो…वो प्रेम जो मेरी बातों से उतर कर अब मेरे कर्म में आ बसा है…देखो मेरी आँखें जो तुम्हें थोड़ा और देखने को कोई भी ज़ोखिम उठाने को तैयार रहती हमुझे दुख है…मेरा थोड़ा और रुकना, मुड़ मुड़ कर देखना और हाथ मैं सदैव के लिए तुमसे बंधवाया हुआ वो बैंड भी.. तुम्हें मेरा प्रेम नहीं समझा पायमैं सब वार के भी हार गई…
मैं चाहूँगी तुम हमारी मुलाक़ात इस बार अपने मन में मेरे नज़रिये से दोहराओ ❤️क्यूँकि सच तो यही हैकोई भी बदलाव मेरा प्रेम नहीं बदल पाया है 🍁
मैं सदा ही तुम्हें मीरा की तरह चाहूँगी ❤️
Paakhi
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ा…
ैं…
ए…
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