मातृत्व(कविता)

कविता

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Shilpi Goel
Shilpi Goel 08 Jan, 2021 | 1 min read

एक अनकहा सा एहसास

तुझे गोद में पहली बार उठाना,

थाम कर हाथ तेरा

नन्हे नन्हे कदमों से तुझे चलाना।

रातों को जाग जाग कर

तुझे रोते से सुलाना,

और आज मैं रोऊं कभी तो

तेरा मुझको सहलाना।

भूख लगने पर तुझे

अपने हाथों से निवाला खिलाना,

अच्छा लगता है मुझे

मेरा रूठना और तेरा मनाना।

मेरी डांटने के बाद भी

तेरा मुझसे यूं लिपट जाना,

जैसे मुझमें ही छिपा हो

तेरा सारा खज़ाना।

स्कूल में पहले दिन

सीख गया है तू नित

नए-नए दोस्त बनाना,

पर सबसे करीबी दोस्त तेरा

आज भी मुझको ही बताना।

तेरी जिद्द के आगे कैसे

नतमस्तक हो जाना,

अब समझी कितना मुश्किल है

माँ होने का फर्ज निभाना।

तेरी तमाम खुशियों में

अपनी खुशियों को पाना,

माँ होने के अर्थ को मैंने

अब समझा अब जाना।

- शिल्पी गोयल (स्वरचित एंव मौलिक)

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