विनती नौजवानों से......

इस प्रपोजल डे मेरा प्रपोजल नौजवानों से............

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Shilpi Goel
Shilpi Goel 08 Feb, 2022 | 1 min read
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हर वर्ष ढेरों नौजवान लड़के-लड़कियाँ एक-दूसरे के द्वारा ठुकराए जाने पर अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेते हैं,, एक बार भी अपने माता-पिता के बारे में नहीं सोचते। उन्हीं को समझाने का एक छोटा सा प्रयास यहाँ मैंने किया है अपनी बोली यानि की हरियाणवी में।

तो लीजिए यहाँ प्रस्तुत है एक नौजवान की प्रेम गाथा उसी की मुँह जुबानी -

बात तब की सै जद् मैं पढ़ा करता फाइनल इयर में अर वो फर्स्ट इयर में दाखिला लेकै मेरे ही काॅलेज में आई थी, तब मेरे जज़्बात कुछ यूँ उमड़ पड़े थे -

जब तू नयी-नयी इस काॅलेज में आई थी,

मेरे भी दिल नै ली एक बार अंगड़ाई थी।

बावला सा हुआ फिरता था तेरी इक झलक पान की खातिर मैं,

जाने कैसी यो पागलपंती सी मेरे दिलो दिमाग पै छाई थी।

होलै-होलै पढ़ाई तै भी जी चुरान लाग्या मैं,

बापू के सपने की कर दी मन्नै जग हँसाई थी।

बेटा पढ़-लिखकर बनेगा एक दिन अफसर मेरा,

माँ-बापू इन सपनां मैं ही जीवैं थे......

उन्होंने भनक ना लागी

इस बार परीक्षा में सबतै पिछली सीट मन्नै पाई थी।

बावरा होया फिरूँ था जिस छोरी नै पान की खातिर मैं,

सबकै बीच उसने मेरी ऐसी हँसी उड़ाई थी

कि बिन कुछ सोचे समझे मन्नै

या दुनिया छोड़न की कसम खाई थी।

चलो इब थानै बताता हूँ, मेरे इस फैसले तै मेरे माँ-बापू पै के गुजरी होगी..........

मेरे इस इक गलत कदम सै

मेरे माँ-बापू पै के बीती थी??

रो-रो कै हाल बुरा मेरी माँ का था

उस छोरी नै कोसा करती थी

बापू नै खोया जवान बालक अपना

रोन की हिम्मत ए खत्म हो राखी थी

इब कौन सम्भालैगा हमनै

इब किस की खातिर जीवां हम

यो सोच कर दोंनो नै अपने जीवन का त्याग किया

इक ठुकराए जाने भर पर देखो तो मन्नै

मेरे कुनबे का सत्यानाश किया

जद् यो सच्चाई मेरे समझ मैं आई, आओ बतलाऊँ थमनै फेर के कसम मन्नै खाई..............

पसीने तै भरा उठा मैं

जद् यो सपना अपनी आँखां तै देख लिया

मेरी इक गलत सोच नै यारों

मेरी अँखियों नूँ खोल दिया

इब ना किसी के पीछै भागूँगा मैं

यूँ ना अपने जीवन तै खिलवाड़ करूँगा मैं

किसी अंजाने चेहरे की खातिर

अपनों नै यूँ ना दुख मैं दूँगा

पढ़-लिखकर बापू का सपना मन्नै पूरा करना है

पूरी करनी अपनी माँ की हर तमन्ना है

चंद दिनों के मोह की खातिर

मन्नै यूँ कोना मरना है

.................

इब थमनै भी समझाऊँ यो इक बात मैं

जरा कान लगा कर सुनना है

छोरे-छोरियों कुछ दिन के प्रेम की खातिर

माँ-बापू के प्रेम तै कोई भी खिलवाड़ ना करना है

पहले अपने पैरों पै खड़े हो जाओ थम

तब नयी जिंदगी में कदम रखना है

सिर्फ प्रेम तै पेट ना भरता यारों

जीवन का यो सच भी स्वीकार करना है

.............

माता-पिता के बचपन के प्रेम को भुला कुछ दिनों के आकर्षण को प्रेम समझने की गलती करने वाले नौजवानों से बस यही विनती है कि, इस धोखे में अपना जीवन खराब ना करें कि तू नहीं तो मेरा क्या होगा।

कभी सोचा है आप नहीं होंगे तो नौ महीने अपने पेट में रखने वाली आपकी माँ का क्या होगा??

उसकी अनमोल ममता का क्या होगा??

बचपन से आपको अपने काँधे पर बैठाकर घूमाने वाले पापा का क्या होगा??

ऊँगली पकड़कर चलना सिखाने वाले बाबा का क्या होगा??

आपके संग खेलने वाले आपके भाई-बहन का क्या होगा??

आपके सच्चे मित्र, आपके दोस्तों का क्या होगा??

क्या यह सब लोग रह पाएँगे आपके बिना??

कोई भी गलत कदम उठाने से पहले एक बार इस बारे में सोचना जरूर,, इस प्रपोज डे पर मेरा यह छोटा सा प्रपोजल आप सब से है।

धन्यवाद।

✍शिल्पी गोयल (स्वरचित एवं मौलिक)

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