कोहरे के प्रेम की बर्फीली चादर ओढ़े आता,
संग अपने नूतन वर्ष का उल्लास भी लाता।
सूर्य की कड़कड़ाती धूप............
जैसे लालिमा हो चेहरे की तुम्हारी,
लो आ गई देखो एहसासों भरी सर्दियाँ प्यारी।।
स्मरण हो आता विस्मरणीय मिलन वह प्यारा,
ऊँचे-ऊँचे बर्फीले पहाड़ों संग सड़क का किनारा।
थामकर हाथ एक-दूजे का बढ़े थे जो कदम,
सबसे मनोरम और सलोने थे वो जिए हुए पल।
छोटे-छोटे दिनों की होती बड़ी-बड़ी बातें,
कहीं उत्तरायण का आगाज बन..........
फसलों के लिए है लाती उत्तम सौगातें।
तो कहीं ठिठुरन बन जाती..................
गरीब के लिए ठंड की दंश भरी रातें।
कहीं सायंकाल को पंछी छिप-छिप जाते घरौंदों में अपने,
तो कहीं रजाई में छिप-छिप बुने जाते कुछ सुनहरे सपने।
कहीं बच्चे मोज़े और टोपी पहन मस्ती करते नजर आते,
तो कहीं मूंगफली और अलाव के समक्ष सब महफिल सजाते।
अनगिनत उत्सव और त्यौहारों का उल्लास बिखराती,
सब धर्मों के रूप-रंग चहुँओर कुछ इस प्रकार फैलाती।
कहीं पर
मीठी-मीठी सर्द हवाओं संग दीपों की कतार है सजती,
तो कहीं
ईसा मसीह के जन्मोत्सव की खुशी में रौनक है लगती।
कहीं
गिले शिकवे भूल लोग लग जाते एक-दूजे के गले,
तो कहीं
गुरु पर्व पर जन-जन के लिए गुरूद्वारे में लंगर खुले।
लोहड़ी की अग्नि मन में विश्वास का पुष्प खिलाती,
उमंग और उल्लास की लहर कुछ इस प्रकार पसर जाती।
रंग-बिरंगे मांझे चढ़ते......
पतंगों के पेचे हैं लड़ते.......
नभ में विचरण करती रंग-बिरंगी पतंगों की उड़ान,
बना देती मकर संक्रांति को और भी ऊर्जावान।
छब्बीस जनवरी का गौरवशाली दिन भी तो सर्द मौसम में आता,
बाबा साहब के अथक प्रयासों की सबको कहानी कह जाता।
इस दिन की होती भारत देश में हर बात निराली,
सुबह-सुबह शुरू हो जाती तिरंगा लहराने की तैयारी।
बच्चे-बूढ़े सब टेलीविजन के समक्ष जम जाते,
रजाई में बैठ परेड देखने का लुत्फ हैैं उठाते।
नये-नये करतब बच्चों को हैरान कर जाते,
हमारे देश की परंपरा से परिचित करवाते।
चतुर्थी का व्रत करता गजानन की महिमा का बखान,
माँ निर्मित करती तिल और गुड़ के स्वादिष्ट पकवान।
जाते-जाते वसंत के आगाज का हमें पैगाम दे जाती,
माँ शारदे आशीर्वाद स्वरूप ज्ञान का भंडार है लुटाती।
प्रेम भरी फरवरी भी तो सर्द हवाओं में शुरुआत पाती,
होली के रंगों संग सर्दियाँ समाप्ति की ओर बढ़ जाती।
✍शिल्पी गोयल (स्वरचित)
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