ए राही, दूर बहुत है मंज़िल तेरी
अभी तो तूने बस शुरुआत करी है;
इन राहों पर चलना आसान ना होगा
हर मोड़ पर तेरे एक चुनौती खड़ी है;
करना है हर चुनौती का डट कर सामना
यही तो तेरे इम्तिहान की घड़ी है;
जरूरी नहीं हर इम्तिहान में खरा उतर पाना
पर कोशिश करते रहना जिद्द तेरी है;
इस जिद्द में साथ हैं तेरे अपने सदा
इन्होंने ही तेरे सपनों की कीमत समझी है;
पार कर सारी कठिनाइयां,
मंज़िल पर पहुँचा है तू अगर;
इतना समझ लेना हर तरक्की में तेरी,
तेरे अपने ही बस एक अनमोल कढ़ी है।
- शिल्पी गोयल (स्वरचित एवं मौलिक)
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