"बहु मुन्ना कब से रो रहा है, लगता है भूखा है।" सास ने कहा।
"हाँ माँ, अभी इसका खाना लाती हूँ।" रीमा ने कहा।
"यह क्या, पैकेट वाला खाना।"
"माँ अभी आठ महीने का ही तो है, इसके तो अभी दाँत भी नहीं आए, सब कहते हैं यह अच्छा होता है बच्चे के लिए।" रीमा बोली।
"जिन सबने कहा है ना बहु, ज़रा उनसे पूछो क्या वो खिलाते हैं अपने बच्चों को यह सब।
मुझे पता है मुन्ना अभी रोटी नहीं खा सकता। जा, मुझे थोड़ा दूध, बिस्किट, कटोरी और चम्मच लाकर दे।"
"पर माँ बिस्किट भी तो पैकेट वाला खाना ही होता है, सब के सब आटे के नाम पर मैदे के बने हुए, वो भी तो इसके स्वास्थ्य को हानि ही पहुँचाएँगे।"
"अरे बाबा, कोई ऐसा वैसा बिस्किट थोड़ी, सिर्फ और सिर्फ "पारले जी" खिलाना है अपने मुन्ने को मुझे।" सास ने कहा।
रीमा भी मंद-मंद मुस्काई और झट से ला दिया सब सामान, मुन्ने ने भी अपनी क्षुधा मिटाई और चेहरे पर संतुष्टि के भाव नज़र आए।
बच्चे को सुलाते-सुलाते कुछ इस प्रकार रीमा अपने बचपन के दिन याद कर बैठी-
स्कूल का वो पहला दिन
हुई थी मैं कितनी खिन्न
माँ ने लाड से पास बुलाया
हाथ में "पारले जी" थमाया
मुखड़े पर मुस्कान तैर गई
जैसे खजाने की चाबी हाथ लग गई
फिर फुदकते हुए स्कूल पहुँचना
आधी छुट्टी का हर लम्हा इंतजार करना
बार-बार बैग में बिस्किट का पैकेट चैक करना
फिर से घंटी बजने की राह तकना
आधी छुट्टी में निकाला जो पैकेट बैग से बाहर
बैंच के पास उमड़ गई बच्चों की बहार
सबने दोस्ती का फिर हाथ बढ़ाया
कुछ इस तरह स्कूल का प्रथम दिन यादगार बनाया
सब सोचते-सोचते जाने कब रीमा की आँख लग गई, बच्चे की आवाज़ से जब जगी तो देखा चाय का वक्त हो चला है।
अचानक से कुछ मेहमान पधारे, जलदबाजी में चाय के साथ पार्लर जी परोसे, तब तक बनाकर लाई गर्मागर्म समोसे।
तब तक सास भी आ गई, अरे रीमा यह क्या सिर्फ बिस्किट सब क्या सोचेंगे हमारे बारे में, माना ये आज भी बच्चों के लिए सुरक्षित हैं और खुश होकर खाए और खिलाए जाते हैं, पर कीमत तो देखो, सब कहेंगे इनके घर पर कुछ भी खाने-खिलाने को नहीं है।
मेहमानों ने जब यह सुना तो बोले,
माता जी इनकी कीमत पर ना जाना
यह बिस्किट हैं बिस्किटों का सरग़ना
अमीर-गरीब का भेद ना बढ़ाते
सबके बजट में आसानी से समाते
स्वाद इनका आज भी है ऐसा लाजवाब
बच्चे, जवान और बूढ़े सब माँगे बेहिसाब
उनकी बात सुनकर माता जी मुसकुराई
उन्होंने भी बिस्किट चाय में डुबो-डुबो कर खाई
तभी रीमा के पति राकेश भी ऑफिस से आ गए। रीमा ने उन्हें भी चाय संग समोसे दे दिए। राकेश ने कहा," अरे भाई, मेरे साथ यह सौतेला व्यवहार क्यों?"
रीमा हैरानी से उन्हें देखने लगी।
तब राकेश ने कहा,
प्रिय यह समोसे बेशक तुम खा लेना सारे
मुझे प्लीज़ दे दो प्यारे बिस्किट "पारले जी" हमारे
यह सुनकर सब खिलखिला कर हँस पड़े और पारले जी संग एक थकान भरा दिन, हल्का-फुल्का बनकर अपनी समाप्ति की तरफ बढ़ चला।
दोस्तों, हम सबने ना जाने कितने ही महंगे से महंगे बिस्किट, इंटरनेशनल ब्रांड के या भारतीय ब्रांड के, महंगी से महंगी बेकरी के चखे हैं, लेकिन सच कहूँ पारले जी वाला स्वाद कहीं नहीं पाया होगा।
दोस्तों संग कैंटीन की चाय हो या मम्मी का दिया हुआ दूध का गिलास, हर मौसम में पारले जी का बिस्किट ही निभाता आया है साथ।
सच बताऊँ, मुझे तो पारले जी सबसे ज्यादा पानी में डुबोकर खाने में मज़ा आता था और उनपर लिखे 'parle-g' को एक एक करकर खाती थी, जैसे कि पहले p फिर a और अंत में g, सच बड़ा मज़ा आता था। चाहे बाज़ार में कितने ही बिस्किट आ जाएँ,
पारले जी की जगह ना कोई ले पाया है और ना ही ले पाएगा,
पारले जी हरदम यूँ ही सदा सबके दिलों पर राज करता जाएगा।
पैकेट पर बनी वो प्यारी सी बच्ची की तस्वीर सबका मन मोह लेती है, मेरा तो आज भी मनपसंद बिस्किट यही है, आपका कौन सा है, बताना जरूर।
उम्मीद करती हूँ मेरा यह लेख जो थोड़ा मनोरंजक और थोड़ा प्रेरक है, आप सभी को अवश्य पसंद आएगा। आपकी प्रतिक्रिया के इंतजार में,
आपकी सखी,
शिल्पी गोयल।
धन्यवाद।
(स्वरचित एवं मौलिक)
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
बहुत सुन्दर
@deepali जी शुक्रिया।
बहुत सुंदर... हमलोग भी morning में parle जी hi खाते है
@sangita जी मैं तो बिना दूध चाय के ही खा जाती हूँ।
Laajbab
@ruchika ji shukriya
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