सच क्या है????
वह जो हम देखते हैं या वह जो हम समझते हैं........
हमारा दिमाग कुछ कहता है और दिल कुछ और कहता है। जरूरी नहीं हर बार जो दिखता है वो ही सच हो और जरूरी नहीं हर बार जो समझा जाए वही सच हो।
सच कुछ भी हो सकता है, जो हमारा दिमाग कहता है वो भी और जो हमारा दिल कहता है वो भी।
बस समझना हमें है और एक सच यह है कि हम यही समझना नहीं चाहते हैं कि आखिर हम चाहते क्या हैं।
'यही सच है' मन्नू भंडारी जी द्वारा रचित आठ कहानियों का एक ऐसा कहानी संग्रह है जो आपको ना सिर्फ सोचने बल्कि समझने पर मजबूर कर देगा कि सच आखिर है क्या?
१ कुंति की तरह अपनी खुशियों का गला घोटकर, अपनों की जिम्मेदारियाँ उठा लेना, क्या सच में बोझ है या उसका अपनों के लिए प्यार।
२ सतीश का बेवजह (या वजह भी कह सकते हैं) अन्दर ही अन्दर स्वयं को कचोटते रहना और जो मन में आए उसी को सच मान लेना, फिर चाहे अपनी ही पत्नी पर शक करना क्यों ना हो।
३ उस जीत के क्या मायने हैं जिसे मिलने पर इंसान का मन इतना भावशून्य हो जाए कि ना तो वो जीत की खुशी मनाने जानता हो ना ही हार का गम, जैसा मुन्नू के पापा के साथ हुआ। क्या सच में ऐसी जीत, जीत ही है?
४ क्या बाहरी सुंदरता सच में सुुंदर होती है? असल में सुुंदर तो अपनों की फिक्र करना और उनका साथ होता है, और इसी साथ की चमक हीरे की चमक के आगे कितनी फीकी है या कितनी तेज, इस सच का निर्णय आपको करना होगा, सरन और इन्दू की कहानी के संग।
५ कहते हैं कि इंसान अगर जानवर के साथ भी रहे तो उससे भी प्यार हो जाता है, तो एक सच इंसान का इंसान से प्रेम करना भी तो बनता है, फिर चाहे वह सामने वाले के साथ कितना ही बुरा बर्ताव क्यों ना करता हो। और यह रिश्ता जब पति-पत्नी का हो तो उसकी सच्चाई के मायने कुछ और ही होते हैं, यही सच आनन्दी की जिंदगी का हिस्सा भी है।
६ डाॅक्टर दयाल का सच, अपनी भतीजी के सामने ऊँचा दिखने की जिद्द है या बचपना या उनके अपने ख्याल जिनमें उन्हें खुशी मिलती है।
७ गुलाबी का सच, एक माँ अपने बच्चों से कितना प्यार करती है इस बात का प्रमाण उसे क्यों समाज को देना होगा? वो क्या करती है, क्यों करती है, उसके जीवन के संघर्षों का क्या सच है यह केवल वह जानती है, जिसे ना तो किसी को बताने की और ना ही समझाने की उसे आवश्यकता है।
८ दीपा के जीवन का सच संजय है या निथिश, शायद उसे ही नहीं पता तो हमें कहाँ से पता होगा, लेकिन जीवन उसका है तो उसका सच भी उसे ही तलाशना होगा कि आखिर वो चाहती क्या है?
हर कहानी अपने-अपने सच को बयां भी करती है और झुठलाती भी है। कहानियों का अंत हमें अपनी समझ से करना होगा। तभी तो हमारी समझ की परख हो पाएगी। आखिर परख करना भी तो एक सच से रुबरू होने जैसा ही है।
Mannu Bhandari जी का इतनी खूबसूरत रचना देने के लिए दिल से धन्यवाद 🙏🙏
✍शिल्पी गोयल
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