रियलिटी शो के बारे में सबके भिन्न-भिन्न विचार हैं,
किसी को खलती इनकी सच्चाई
तो किसी को सिर्फ मनोरंजन की दरकार है।
कोई कहे रियलिटी शो नहीं होते हैं रियल,
यहाँ सबकुछ होता है पहले से क्लियर।
स्क्रिप्टिड शो का नया वर्जन है,
वाकिफ यहाँ इससे सब जन हैं।
कोई कहता,
जज के रूप में यहाँ सेलिब्रटी का असली चेहरा दिखता है,
तो किसी के अनुसार,
उनकी मेज़ पर रखा मग भी हजारों के भाव में बिकता है।
किसी प्रतिभागी ने रो-रोकर यहाँ सहानुभूति पाई है,
तो किसी ने शुरुआत से अंत तक अपनी पहचान छिपाई है।
कुछ सिर्फ चित्रपट पर दिखने भर को आते हैं,
कुछ अपने टैलेंट से अलग छाप छोड़ जाते हैं।
जिस प्रतिभागी का टैलेंट आम जनता को भाता है,
वह रियलिटी शो में ज्यादा समय कहाँ टिक पाता है।
कही बाल मन को लुभाता,
कही बड़ों का मनोरंजन करवाता।
वोटिंग सिस्टम के बहाने से,
लोगों को बेवकूफ है बनाया जाता।
कभी दूसरों की गलतियों से सीखने यहाँ मिलता है,
कहीं सच में कोई चेहरा यहाँ खिलता है।
जीत यहाँ पहले से ही तय है,
इस बात में कितना संशय है।
दुनियाभर की अंधी दौड़ में,
भाग रहा हर व्यक्ति होड़ में।
भूल कर अपने बच्चों के मानसिक स्तर को,
अभिभावक छिन रहे बचपन के खूबसूरत पल को।
मनोरंजन के नाम पर जब फूहड़ता परोसी जाती है,
आँखों पर पट्टी बाँधकर यहाँ सच्चाई दिखाई जाती है।
रियलिटी को अगर स्क्रिप्टिड ही बनाना है,
क्यों रियलिटी का करना फिर बहाना है।
ना जाने कितना असली हुनर हर रोज यूँ कुचला जाता है,
स्वयं को बेहतर दिखाने की खातिर गुनाह वह कर जाता है।
मासूमों के जज़्बातों से खेलना अब बंद करो,
मनोरंजन को मनोरंजन ही रहने दो
भावुकता का संगम खत्म करो।
✍शिल्पी गोयल (स्वरचित एवं मौलिक)
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