बदल गए बताया नहीं, मौसम की तरह।
छोड़ गए मझदार में, बेनाम कश्ती की तरह।।
कितनी ख्वाब देखे थे तुम संग
सब अधूरे ही रह गए;
किये थे वादे जो तुमने कभी
सब बेमानी हो बह गए;
जाने क्या खता हुई मुझसे
हम-तुम अजनबी बन रह गए;
बदल गए बताया नहीं, मौसम की तरह।
छोड़ गए मझदार में, बेनाम कश्ती की तरह।।
शायद किसी गलतफहमी ने हमारे रिश्ते में जगह बनाई;
इसलिए ही इस रिश्ते की टूटने की आज यूँ नौबत आई;
याद तो आज भी आती है लेकिन
मुस्कान की जगह आँसू दे जाती है;
तोड़कर दिल मेरा जाने तुमको कैसे
रातों को सुकून की नींद आती है;
बदल गए बताया नहीं, मौसम की तरह।
छोड़ गए मझदार में, बेनाम कश्ती की तरह।।
जानती हूँ अब कभी मुलाकात ना होगी हमारी;
इसलिए दुआओं को ही देती हूँ मैं यह जिम्मेदारी;
तेरे-मरे साथ की लिख दूँ अब मैं अंतिम कहानी;
भुलाकर वो सुहाने पल, जीवन को दूँ नई रवानी;
बदल गए बताया नहीं, मौसम की तरह।
छोड़ गए मझदार में, बेनाम कश्ती की तरह।।
- शिल्पी गोयल (स्वरचित)
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