हर साल अपार्टमेंट में होली का आयोजन होता है और हर बार की तरह इस बार भी नुपुर और उसकी छोटी बहन कंचन बढ़-चढ़ कर होली के आयोजन में हिस्सा लेती हैं।
नुपुर को नहीं पता था इस बार की होली उसके लिए खास होने वाली थी, रमा बुआ, हाँ बुआ ही तो कहती है नुपुर उन्हें, वो नुपुर के सामने वाले फ्लैट में रहती हैं, इस बार होली पर उनका भांजा नवीन जो एक फ़ौजी है उनके यहाँ होली मनाने आया हुआ था। नवीन के मन को नुपुर देखते ही भा गई थी।
रमा जी को तो नुपुर पसंद थी ही, अब बस नुपुर की हाँ करने की देर थी और नवीन कोई जोखिम नहीं उठाना चाहता था, इसलिए उसने होली का दिन चुना नुपुर का हाथ मांगने के लिए।
सब लोग सफेद चमकदार कपड़े पहनकर आए थे लिए नुपुर हर बार की तरह अपने पसंदीदा गुलाबी रंग के सूट में थी और उस रंग में उसकी खूबसूरती और भी निखर कर आ रही थी।
सब अलग-अलग रंग में रंगे हुए थे, तभी नवीन हाथों में एक तोहफा लेकर आता है और उसे नुपुर को देते हुए होली की मुबारकबाद देता है।
नुपुर तोहफा खोलती है, उसमें एक गुलाबी रंग की साड़ी और एक नोट था जिसपर लिखा था "विल यू मैरी मी"।
नुपुर कुछ समझ पाती इससे पहले ही दोंनो के घरवाले वहाँ आ जाते हैं और नुपुर शर्मा कर वहाँ से चली जाती है।
कुछ दिन बाद नुपुर और नवीन का विवाह हो जाता है और दोंनो खुशी-खुशी अपना जीवन व्यतीत कर रहे होते हैं कि कालचक्र अपना चक्र घुमाता है और नवीन शादी के एक वर्ष बाद ही शहादत को अपना नुपुर को छोड़ दूसरी दुनिया में चला जाता है और नवीन के घरवाले नुपुर को घर से बाहर कर देते हैं और नुपुर अपने माता-पिता के साथ वापिस अपने घर आ जाती है।
कंचन अपनी परीक्षाएं देने के लिए हास्टल गई होती है, उसे नवीन के बारे में कुछ नहीं बताया गया था जिससे उसकी परीक्षा में कोई बाधा ना पड़े।
कंचन जब लौटकर घर आती है तो नुपुर को घर पर देखकर बहुत खुश होती है और कहती है इस बार दीदी और मैं पहले जैसे होली मनाएंगे।
माँ कंचन सब कुछ बताती है तो कंचन की रुलाई फूट पड़ती है, लेकिन वो अपनी दीदी को ऐसे नीरस बिना रंग का जीवन जीते नहीं देख सकती थी।
होली वाले दिन-
"दीदी आज होली है, आप यहाँ अकेले बैठी हैं, चलिए खेलते हैं बाहर।"
नुपुर आने से इंकार कर देती है, इस पर कंचन नुपुर को समझाती है और कहती है कि,
"आप एक फ़ौजी की पत्नी हैं, जो ना सिर्फ अपने परिवार के अपितु भारत माता के हर परिवार के जीवन में रंग भरने की कसम खा सीमा पर जाते हैं और स्वयं की कुर्बानी देकर उसे पूरा भी करते हैं।"
"कुर्बानी का रंग लाल होता है और उस कुर्बानी की कीमत आप ये सफेद रंग धारण करकर नहीं चुकाएंगी, अपितु इस सफेद रंग में आप जीजा जी की शहादत का लाल रंग मिलाकर फिर से इसे गुलाबी बना दीजिए, क्योंकि जीजा जी जहाँ भी होंगे वो भी आपको इसी रंग में देखकर ही खुश होंगे, उनकी खुशी के लिए ही चलिए।"
कंचन की बात सुनकर नुपुर को अपनी गलती का एहसास होता है, वो पहले नवीन की तस्वीर को गुलाल लगा कर होली की मुबारकबाद देती है और फिर कंचन को गुलाल लगा कर उसका धन्यवाद करती है, उसे जीवन की एक नई दिशा प्रदान करने के लिए।
सबके मना करने पर भी कंचन अपनी दीदी को गुलाबी रंग का गुलाल लगाती है जो नुपुर को बचपन से पसंद था और इसके साथ ही नुपुर के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान तैर गई।
आज नुपुर एक छोटा सा संगठन चलाती है जिसमें वह उन सब महिलाओं के जीवन में रंग भरने की कोशिश करती है, जिनके जीवन के रंग किसी ना किसी वजह से उनसे रूठ से गए हैं।
इस प्रकार कंचन ने नुपुर के जीवन में एक बार फिर से रंग भरकर उसके जीवन को सकारात्मकता से भर दिया।
- शिल्पी गोयल (स्वरचित एवं मौलिक)
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