कहने को तो आँचल है
एक कपड़े का टुकड़ा
पर उसमें छुपा है एक औरत का
जीवन भर का दुखड़ा
बचपन से ही माँ का प्यारा आँचल
बन जाता है ठंडी छांव जीवन की
जवानी की दहलीज पर जाते जाते
माँ सिखाती आँचल है इज्जत घर की
किशोरावस्था में आँचल लगता है
जैसे सुंदरता का प्रतीक हो कोई
इस सुंदरता भरे आँचल को जमाने से
बचाना ही होती जीवन की असली कमाई
अगर लग जाए गलती से दाग कोई
गैरों को तो छोड़ो
अपने ही दूर कर देते हैं
भुगतने को सजा
किसी ओर के जुर्म की
बहू बन कर जाती जब ससुराल
वही आँचल बताता उसका हाल
सिर से जरा सा जो सरक जाता
मानो घर में तूफान खड़ा हो जाता
पिया को यूँ भाता उसका आँचल
जैसे नैनों में बसा हुआ काजल
जो बचपन गुजरा माँ के आँचल तले
आज खुद माँ बन वही आँचल है देती
अपने बच्चों की पलकों तले
बुज़ुर्ग होकर भी आँचल का साथ कभी ना छूटता
यही वो टुकड़ा है जो अंतिम क्षण तक साथ निभाता
हर औरत की होती है यही कामना
पूरी हो उसकी यह मनोकामना
जीवन पूरा हो पति से पहले
लूँ विदाई दुनिया से बनकर सुहागन
और ओढूँ आँचल फिर वही सुहावना
- शिल्पी गोयल (स्वरचित एवं मौलिक)
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