सीधी बात बिना बकवास अपनी हरियाणवी में।

आओ थामनै और खुद नै सिखलाऊँ अपनी भाषा में, जिसतै आसानी तै घुस जावे हर बात इस दिमाग में। जब सूँ हरियाणा की तो हरियाणवी में बतलाऊँगी, कितनी आसानी तै बड़ी सी बात समझा जाऊँगी।।

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Shilpi Goel
Shilpi Goel 18 Nov, 2021 | 1 min read
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"अरे ओ नालायक इधर तो आ।"

चाचा नै मनोहर भाई ती आवाज़ लगा कै बोला।

"हाँ बापू बोलो, के कहना सै, जब देखो अपना छो मेरे पै तारते रहा करो।"

मनोहर भाई बोला।

"चुप कर घना ना बोल्या कर, अर सुन मैं नू कह रहा था जो चार लाड्डू लाया था ना काल बूंदी आले उनमें सै एक बच रहा था, इतनी गर्मी पड़े सै सड़ गया हो गा, उन्नै कूड़े में बगा दे। कोए खावेगा तो बीमार हो जा गा।"

चाचा नै फरमान सुनाया मनोहर भाई नू।

"अरे बापू बस इतनी सी बात थी के, मन्नै सोचा बेरा ना के काम बताओगे।"

पहले तो मन्नै नू बताओ के थाम चार लाड्डू कयां तै लाए थे जब हम सिर्फ तीन लोग सै।"

मनोहर भाई नै फेर एक प्रश्न पूछ डाला।

"अरे कही थी मन्नै पर उस बिरजू हलवाई नै चार तै कम देन सै मना कर दिया था, बस इस वास्तै एक फालतू लाना पड़ गया।

इब कानून ए छांटता रहवेगा के उन्नै फेंकेगा भी जाकर नै।"

चाचा इब कै कसूता छो में आकर बोल्या।

"अरे आपनै के मेरती जमा ए बेवकूफ ला रख्या सै, चिंता ना करो बापू वो तो मन्नै काल ए ताजा ताजा अपनी गैय्या बिंदिया ती खिला दिया था।

म्हारी मैडम ने स्कूल में सिखाया सै के भोजन ती कदे खराब ना करें सै, अन्न का सदा ए आदर करना चाहिए।"

मनोहर भाई बोला।

"अच्छा, थारी मैडम नै अपने सै बड़ा का आदर ना करना सिखलाया अर थारती।"

मनोहर भाई का कान पकड़ कै चाचा बोले।

हीं हीं हीं...............

(मनोहर भाई की चिर परिचित सी हँँसी।)

अब तो मनोहर भाई की बैठक जम ही गई थी समझो, तो चलो हम भी जान लें कुछ ज्ञान की बात उनसे।

"बापू आपने पता सै मैडम नै फोन पर चलन आली एक एप्प बताई है हम बालका सै जो म्हारे खर्चे नै बचत में बदल दे सै।"

चाचा ने जिज्ञासु होते हुए पूछा, "अच्छा वो किस तरिया छोरे।"

"मैं समझाता सूँ आपनै, आसान तरीके सै,

आप चार लाड्डू लाए थे नै, अगर एक फेंक देते तो उस एक लाड्डू पर खर्च करे पिसे बर्बाद हो जाते के नी, हो जाते नै, अर इब वो ही लाड्डू मैनै अपनी बिंदिया ती खिला कै एक तो उस लाड्डू पै खर्च हुए पिसे खराब होन तै बचाए, अर दूसरा अच्छा भोजन खान तै अपनी बिंदिया भी तो चुस्त दुरुस्त बनेगी, अर फिर गाढ़ा और बढ़िया दूध मिलेगा ना पीन नै। हुए नै दो दो फायदे एक साथ।"

"हाँ हुए तो, पर इस बात का थारी मैडम आली बात तै के जोड़ होया।" चाचा आँख तरेरते हुए बोले।

"बताऊँ सूँ, ठाण्ड तो राखो बापू, इब जिस तरिया हम कोए सामान मँगवावाँ 491 रुपए का, अर सामान लान आल्या नू कह दै खुले कोना तो गए ना अपने 9 रुपए पानी में, वो तो चालता बनेगा 500 की पत्ती जेब मैं धर कै।

अर जै आपा 'जार एप्प' का इस्तेमाल करकै डिजिटल तरीके से पेमेंट करा तो वे 9 या 4 रुपए, जितने भी हम चाहवा म्हारी बचत में बदल जांगे वो भी डिजिटल सोने के रूप में, और जब आपा चाहवैं तब उन्नै निकलवा सका।

इब बोल बापू हुआ ना दुगुना फायदा।"

चाचा बोले, "शाबाश छोरे पहली बार किमे ढ़ंग का सीख कै आया सै।"

"आपनै तो मैं किमे कर लूँ, ढ़ंग का लागता ए कोना, वर्ना छोरा तो मैं बड़ा कमाल का सूँ।"

मनोहर भाई भी नहले पै दहला मारते हुए और पिटाई सै बचते हुए जल्दी सै निकल लिए वहाँ तै।

तो बताओ दोस्तों, है ना 'जार एप्प' कमाल का।

धन्यवाद।

✍शिल्पी गोयल(स्वरचित एवं मौलिक)

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